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साधना मार्ग-भक्तियोग रहित वचन ज्ञानकी हानि करनेवाला है । कुछ भी देनेके पहले त्यागी कहलाना केश रहित शृंगार है । दृढ़ता रहित भक्ति मानो बिना पेंदीके घड़ेमें भरा पानी है। मारय्य प्रिय अमलेश्वर लिंगका स्पर्श ही भक्ति है।
(२७६) नैष्ठिक विश्वास न हो तो कितना ही पढ़ा तो क्या और कितना ही सुना तो क्या और कितना ही जप-तप किया तो क्या ? यह सब व्यर्थ है,, विना लक्ष्यके लक्ष्य-वेधसा है । अर्थात् दृढ़-निष्ठा, भावपूर्ण श्रद्धा निर्माण, करनेवाली पूजा ही हमारे अखंडेश्वरकी प्रसन्नता है ।।
(२७७) प्रसन्नतासे ही उसे प्रसन्नकर लेना चाहिए, बिना प्रसन्नताके असंभव है। अनेक वृक्षोंपर उड़नेकी मर्कट-चेष्टा मत कर मेरे मन ! छूकर देख, दबाकर देख, हिलाकर देख, छूकर दबा-हिलाकर देख, फिर भी जवः तेरी निष्ठा निश्चल रहती है तब वह अपनेको दे डालेगा महालिंगकल्लेश्वरा ।
(२७८) जागृति-स्वप्न-सुषुप्तिमें और कुछ सोचा हो तो तेरी सौगंध है । यह झूठ हुआ तो तेरी सौगंध । कूडल संगम देवा तेरे अतिरिक्त और किसीका स्मरण किया तो तेरी सौगंध ।
टिप्पणी:-सौगंध यह शब्द मूल वचनके 'तले दंड' इस शब्दके अर्थमें लिया। है । "तले दंड" का ठीक अर्थ "शिरच्छेद" है ।
(२७९) भगवान एक है और नाम अनन्त ! परम-पतिव्रताके लिए पति एक है, औरकी पोर झांका तो नाक कान काटेगा वह ! अनेक देवी-देवताओंकी जूठन खानेवालोंको क्या कहूँ कूडलसंगमदेवा ?
(२८०) मालाके मनके गिनकर अपने जीवनके क्षण नष्ट न कर । पत्थर पूज-पूजकर अपने जीवनको ध्वस्त न कर। क्षणभर अपनेको जाननेका प्रयास कर, सत्यका स्मरण कर, क्षण-क्षरण किंचित्सा न हो। अपनेको, सत्यको जाननेका प्रयास कर, प्रागमें जो उष्णता है वह पानी में मिलेगी गुहेश्वरा।
टिप्पणी:-भक्तिका अर्थ केवल माला, जप, भजन, पत्र-पुष्पसे पूजन आदि नहीं है। भक्तिका अर्थ अनन्यभावसे परमात्माके शरण जाना है, अपनेको अर्थात् परमात्माको जानना भक्ति है। यह वचनकारोंका स्पष्ट कहना
(२८१) वनकी कोयल घरमें पाएगी तो क्या वनको भूल जाएगी? अरण्यका हाथी घरमें बांधा तो क्या वह अरण्यको भूल जाएगा ? कूडल संगम देवके लिए मर्त्य-लोकमें पाएंगे तो क्या अपने प्रादिमध्यान्तका स्मरण करना छोड़ देंगे ?
(२८२) भक्तोंको फल-पदादि देनेकी बात कहते हो, किन्तु वे उन्हें नहीं लेंगे। ये तुमपर, तुम्हारे रुपपर, अपना तन, मन, धन सब कुछ न्योछावर कर देते