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साधना मार्ग - कर्मयोग
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• प्रभाव नहीं होगा ।
कायक शुद्ध होना चाहिए । अहंकारसे कायक अशुद्ध होगा तथा परमात्मार्पण रहित कर्म कायक नहीं कहा जा सकता |
वचन - ( ३२८ ) मैंने प्रारम्भ किया है गुरु पूजाके लिये, मैं उद्योग व्यवहार कर रहा हूँ लिंगार्चन के लिये । मैं परसेवा कर रहा हूं जंगम दोसोहके लिये । मैं कोई भी कम क्यों न करूं तू देगा इस विश्वाससे दिया हुआ धन तुम्हारे कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्य में व्यय नहीं करूंगां कूडल संगमदेवा ।
टिप्पणी: - भक्तका संपादन भी भगवान के कार्य में उनके चरणों में अर्पण करने के लिये होता है ।
(३२९) पंडित हो या पामर, संचित कर्म भोगे विना चारा नहीं । प्रारब्ध कर्म भोगे विना गत्यंतर ही नहीं है । मैं किसी लोकमें जाऊँ तो भी वह मुझे नहीं छोड़ेगा । कर्मफलोंको कूडलसंगमदेवकाः श्रात्म नैवेद्य करनेवाला साधक ही धन्य है ।
(३३०) आँखोंके सामने रखा हुआ ध्येय कभी ग्रोझल नहीं होगा । अपने कर्म में लगाया हुआ चित्त उसके सामनेसे नहीं उतरेगा । मैंने किया है यह भाव चित्तमें रहा तो चित्त स्वस्थ नहीं होगा । इस चित्त स्वास्थ्य के प्रतिरिक्त लिंग नहीं दिखाई देगा आयदविक मारैया ।
( ३३१) जिस वीरने युद्ध क्षेत्रका निश्चय किया है उसको भला घरकी क्या चिता ? अर्थ, प्रारण और श्रभिमानको शिवार्पण करनेके पश्चात् भला उनके बोझको सिरपर उठा लेने में सद्भक्ति है क्या ? यह चंदेश्वर लिंगको असम्मत कर्म है
(३३२) अन्न दान से पुण्य मिलेगा, वस्त्र दानसे पुण्य मिलेगा, धनदानसे पुण्य मिलेगा, यह सब अन्यान्य फल पदकी संपत्ति है कूडलसंगमदेवा ।
( ३३३ ) आग से निगली वस्तुका श्राकार प्रकार कैसे ? समुद्र में डूबी हुई नदीका प्रथक् प्रतीक कैसा ? लिंग स्पर्शित अंगको कहाँका पुण्य और कहाँका पाप नास्तिनाया ।
( ३३४) कर्म में फलाशा नहीं होनी चाहिये । क्योंकि सकाम कर्म भक्तिसे पुरातन परमात्मा प्रसन्न नहीं होता । हमारा श्रखंडेश्वर किसी श्राशा ग्राकांक्षा करनेवाले भक्तको नहीं चाहता ।
( ३३५) हाथ में हथियार पकड़नेवाले सब हत्यारे होते हैं क्या ? हथियार चलानेवाले सब युद्ध कर सकते हैं क्या ? सकाम भावनासे, उद्देश्यपूर्ति के लिये कर्तव्य कर्म करनेवाले सव भवत कहलाएंगे क्या ? वह चंदेश्वर लिंगको न पहुँनेवाला कार्य है ।