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वचन साहित्य- परिचय
गुरु उपदेशको अवहेलना कर मनसोक्त (जैसे मनने कहा वैसा ) श्राचरण करने वालों का मुंह मत दिखायो महालिंगगुरु सिद्ध श्वर प्रभु |
(४१७) अरे ! इहपर दोनोंका अतिक्रमण करके, दोनोंको जीते हुए भक्त शिवयोगीको भी सदाचार पाठ ( श्रावश्यक ) है । सदाचार न जाननेवाला पापी सूरसे भी हीन है" "कलिदेवर देवा ।
(४१८) सदाचार रहितको, सदभक्ति रहितको मैं नहीं चाहता उनकी अराधना ही एक दंड है । नित्यका प्रयश्चित किस कामका कूडलसंगम देवा ।
(४१९) करोड़ों बार श्रद्वैत कह सकते हैं किन्तु क्या एक क्षरगभी सदभक्तिका श्राचरण कर सकते हैं ? कहने जैसे करने और रहने वाले महात्माको चरण पकड़कर बचाओ कपिल सिद्ध मल्लिकार्जुन ।
टिप्पणीः- वचनकारोंके अनुसार करणी श्रीर कथनी एक होनी चाहिए । वस्तु संगति र शब्दका एक रूप होता चाहिए । यही सत्य धर्म है । शरणमार्ग में सत्य, अहिंसा प्रादिका अत्यन्त महत्त्व है ।
(४२०) देव लोक, मृत्यु लोक, ऐसा भेद नहीं है । सत्य बोलनाही देवलोक है और असत्य बोलना ही मृत्युलोक है । सदाचारही स्वर्गलोक है और अनाचार ही नरक है । तुम ही इसके प्रमाण हो कूडलसंगमदेवा ।
(४२१) सच बोलना शील है, सत्य चलना शील है, सज्जनोंके लिए सदाचारसे चलकर के सत्य जानना ही शील है महालिंगगुरु सिद्धेश्वर प्रभु |
(४२२ ) सच बोलना, उसके अनुसार चलना; झूठ बोलकर उसके अनुसार चलनेवाले प्रपंचियों को वह कूडलसंगमदेव नहीं चाहता ।
(४२३) सच न बोलनेवालों से हजारोंमें एक वार न बोलना ही अच्छा है । लाखों में एक बार न बोलना ही अच्छा है, उन लोगोंका स्वामित्व जल जाए ! काल कवल हो जाये गुहेश्वरा तुम्हारे शरणोंको ऐसे लोगों के सामने मुंह नहीं खोलना चाहिए ।
(४२४) दया रहित धर्म कौनसा है रे ! प्रत्येक प्राणिमात्र के लिए दयाकी श्रावश्यकता हैं । दया हो धर्मका मूल है रे कूडलसंगमदेवा ।
(४२५ ) मैं क्यों तलवार पकडु हाथमें ? किसको काटकर क्या जानूंगा मैं ? सारा संसार तू है रामनाथा ।
(४२६) सब जान लेने के बाद मारने मरनेमें क्या अंतर है ? सब जाने हुए शरण के लिए हार जीतके लिए लड़नेको बात कैसी ? सब पुराण के पढ़ लेने के अनंतर किसी जीवको मारने काटने में क्या महत्त्व है ? श्रुति सुनकर, स्मृतिका अंगीकार करके सर्वहित करनेमें क्या गति होगी ? श्रात्मामें सर्वभूतहितरत होनेपर उसीको यह सब वस्तु स्वयं प्रतीत दसेश्वलिंग है ।