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विधि - निषेध
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( ४५४) लोगोंने पूछा, पीछा किया, तो शुभलग्न कहो बाबा ! राशि, कूट, गणादि संबंध है ऐसा कहो वावा ! 'चंद्रबल, तारा वल, गुरुवल है, ऐसा कहो, कलसे आजका दिन ही पूजाके लिए अच्छा है ऐसा कहो कूडलसंगम देवकी पूजाका फल मिलेगा ।
( ४५५ ) श्राजकल ऐसा मत कहो, शिवशरणोंको सव दिन एकसे हैं । न भूलकर हमारे कूडलसंगमदेवका स्मरण करनेवालेके लिए सब दिन एकसे हैं ।
टिप्पणीः - ऊपर के वचनोंमें कहा गया है कि अद्वैत बातोंका विषय नहीं है । वह अनुभवका विषय है । योग्य सत्कर्म करते हुए उसे जानना चाहिए । वैसे ही सगुन प्रसगुन में विश्वास नहीं करना चाहिए । शिवशररणों के लिए हर क्षरण शुभ है । वचनकारोंने यह भी कहा है कि पापक्षालनका उत्तम साधन पश्चात्ताप है । प्रायश्चित्तका दंभ नहीं है ।
(४५६) भक्तोंकी एक ही बात है, केलेका एक ही फल है । यदि विरक्त छोड़े हुएको पकड़ेगा तो मरे हुएका मालिन्य है । और सत्कर्मों में चलनेवालों को अपना नित्य नियम छोड़कर बुरे रास्ते पर चलकर धनदानसे अपना पाप परिहार करनेका ढोंग रचते देखा तो महलशंकरप्रियसिद्धरामेश्वर लिंग मिलकर भी वात नहीं करेंगे ।
(४५७) अरे पाप कर्म करनेवाले ! अरे ब्रह्महत्या करने वाले ! एक वार शरण आओ रे ! एक वार शरण प्रायो तो पाप कर्म भाग जायंगे । सब प्रकार के प्रायश्चित्तका वह स्वर्ण पर्वत है, उस एकको शरण आओ हमारे कूडलसंगम देवको ।
टिप्पणी:- पैसा देकर, दान देकर, पंडितोंसे प्रायश्चित्त, मुद्रा लगवा लेना, पाप से मुक्त होने का साधन नहीं है । उसका साधन है परमात्मा की शरण और
पश्चात्ताप |
(४५८) परमार्थकी बातें करते हुए हाथ फैलाकर दूसरोंसे मांगना बड़ा कष्टकर है । पुरातनोंकी भांति वोलें क्यों श्रोर किरातों की भांति बरते क्यों ? श्राशासे, इच्छासे क्यों बोलते हो ? आशासे इच्छासे परमार्थ की बातें करना मूत्रपान करनेकासा है ! शिवशरण कभी ऐसा करेगा ? वचनसे ब्रह्म की बातें करतेकरते मनसे आशाका पाश बुनना देखकर मुझे घृणा होती है महालिंगगुरु सिद्धेश्वरप्रभु ।
टिप्पणी :- पुरातन वीर शैवोंमें "पुरातनरु" अथवा "आधरु" कहकर ६३ शैव संतोंकी पूजा होती है । उनको ग्रादर्श पुण्य-पुरुष माना जाता है । किरातशिकारी ।