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वचन-साहित्य-परिचय आज ही तू मेरी नाक काट ले कूडलसंगमदेवा।
(४८२) आचार-विचार-उच्चारमें सिद्धांतानुसार चलें तो कोई कुल चांडाल कुल नहीं है । असत्य वचन, अधम आचार, हुआ कि चांडालता आई। दुनियाभरकी मलिनता, चोरी, परस्त्रीसंग आदिमें उतरकर ध्वस्त होनेवालोंके लिए कौनसा कुल है ? सदाचार ही कुलशील है । दुराचार ही मलिनता है । ऐसा इन दोनोंको जानकर समझना चाहिए कैयुलिगत्ति अडिगूट कड़ेयागवेड अरि निजात्मरामना।
(४८३) खून करनेवाला ही चांडाल है । मल खानेवाला मातंग । ऐसे लोगोंका कैसा कुल है रे ! सफल जीवात्माओंका भला चाहनेवाले हमारे कूडलसंगमदेवके शरण ही कुलवान है ।
टिप्पणी:- वचनकारोंका कहना है कि प्राचार-विचारसे उच्चता तथा नीचता माननी चाहिए, जन्मजात कुलसे नहीं। उनके ऐसे भी वचन हैं कि शरणोंको लोकापवादसे नहीं डरना चाहिए । प्रात्मसाक्षीसे सव काम करना चाहिए।
(४८४) जीवन है तब तक मौत नहीं है । भाग्य है तव तक दारिद्रय नहीं है । तब भला लोकापवादसे क्यों डरें ? उसके लिए क्यों रोएं कूडलसंगमदेवा तेरा सेवक होनेके उपरांत ?
(४८५) सर्वसंग परित्याग किए हए शिवशरणोंसे संसारी लोग प्रसन्न रहें तो कैसे रहेंगे ! गांवमें रहा तो उपाधियुक्त कहेंगे, और अरण्यमें रहा तो पशु कहेंगे ! धन त्याग दिया तो दरिद्र कहेंगे और स्त्रीको त्यागा तो नपुंसक कहेंगे। पुण्यको छोड़ा तो पूर्वकर्मी कहेंगे और मौन रहा तो गूंगा कहेंगे तथा बोला तो बातूनी कहेंगे। खरी खरी बात कहो तो निष्ठुर कहेंगे, सौम्यतासे समत्वपूर्ण वातें कहेंगे तो डरपोक कहेंगे इसलिए कूडलचन्नसंगैय तेरे शरण न लोक इच्छासे चलेंगे न लोक इच्छासे बोलेंगे।
टिप्पणी:-~वचनकारोंने अनेक प्रकारसे कहा है कि शरणोंको आत्मप्रकाशसे अपना मार्ग चलना चाहिए तथा निंदा-स्तुतिको कोई महत्त्व नहीं देना चाहिए।
(४८६) ज्ञानियोंको दर्पणके विंबकी भांति रहना चाहिए। ज्ञानियोंको अपने ज्ञानमें सोनेकी भांति रहना चाहिए। ज्ञानियोंको संशयातीत होना चाहिए। ज्ञानियोंको समूचे संसारको अपने जैसा समझना चाहिए । ज्ञानियोंको कभी कहा पापवासनाका दर्शन नहीं होना चाहिए। ज्ञानियोंको कभी दूसरोंकी वातोम नहीं आना चाहिए । ज्ञानियोंको सदैव अपनेसे बड़े और गुरुजनोंसे नम्र रहना चाहिए। ज्ञानियोंको दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए। ज्ञानियोंको सदैव