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विधि - निषेध
विवेचन - अब तक परमात्मा, विश्व, मुक्ति, उसकी साधना पद्धति, साधक के जीवन में आवश्यक गुरण-शील- कर्म श्रादिके विषय में वचनकारोंने जो महत्त्वपूर्ण वचन कहे हैं उसको देखा, अत्र साधकके लिए करने और न करने के, अथवा स्वीकार करने और अस्वीकार करने के कुछ विषयों पर वचनकारोंका क्या मत है इसका विचार करें । “कोई काम करो" ऐसा कहना विधि है और "न करो" ऐसा कहना निषेध | किसी भी साधना मार्गका विचार क्यों न करें वह विधि निषेधात्मक ही दिखाई देगा | अब तक इस पुस्तकमें जो लिखा गया उसमें भी अनेक प्रकारके विधि-निषेध या चुके हैं । संभवतः इस अध्याय में उनकी पुनरुक्ति भी हो सकती है । फिर भी विचार करने पर विधि-निषेधात्मक वचनोंका अलग स्वतंत्र अध्याय देना प्रावश्यक लगा ।
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वचन - (४३६) पराई संपत्तिको न छूना ही व्रत है । परस्त्री से संबंध न रखना ही शील है । किसी जीवको न मारना ही नियम है । तथ्योंको गलत नं समझना ही सत्य नियम है । यह ईशान्यमूर्ति मल्लिकार्जु नलिंगको संदेह न होनेवाला व्रत है ।
( ४३७) जो सामने आया उसको स्वीकार करना ही नियम है | वंचना न करना ही नियम है | प्रारंभ करके न छोड़ना हो नियम है । झूठ न बोलना तथा वचन भंग न करना ही नियम है । कूडलसंगमदेवकी शरण जाने पर उसको सर्वस्व समर्पण करना ही नियम है ।
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(४३८) शील शील कहकर अभिमानसे बोलते हो शील क्या है यह पता भी है ? सुनो ! जो है उसको निर्वचनासे व्यक्त करना ही शील है । जो नहीं है उसको न दिखाना ही शील है । पराये धन और पराई स्त्रीको न छूना ही शील है । अन्य देवता तथा कालके लिए न रोना ही शील है । हमारे कूडल - संगमदेवकी शरण गए हुत्रोंका समर्पण करना ही प्रात्यंतिक शील है ।
(४३९) शील शील कहकर बोलने वाले सब हैं किंतु शीलका रहस्य जानने वाला कोई नहीं । ताल, कुत्रां, नदी, नाला आदिके पानीका उपयोग नहीं किया तो क्या शील हुआ ? कलसे पर कपड़ा बांधकर नैवेद्यका पानी छानकर लाना क्या शील हुआ ? पके फल, कंद मूल आदि न खाना क्या शील हुआ ? नमक, तेल, दूध, घी, हींग, मिर्च, सुपारी आदि न खाना क्या शील है ? नहीं, क्योंकि ये सब बाह्य व्यवहार है । अंतरंग के शत्रु षड्वैरियोंकों नहीं छोड़ा | माया मोह
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