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साधक के लिये श्रावश्यक गुरण शील कर्म
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हूं । नित्य स्मरण करनेवाले मनको, समय कुसमय यहां वहां बहनेवाले मनको, चित्तमें स्थिर करने की क्रिया जाननेसे सर्वत्र केवल प्रकाश हो प्रकाश है गुहेश्वरा ।
(४१२) दारिद्र्य ? कैसा दारिद्र्य ? तनका या मनका ? जंगल चाहे जितना बड़ा क्यों न हो कुल्हाड़ीकी नोकमें उस जंगलको काट डालने की शक्ति नहीं है ? कुल्हाड़ीकी नोक अरण्यसे बड़ी है ? सच्चे शिवभक्तों को दारिद्र्य नहीं है । सत्साग्रहियों को दुष्कर्म नहीं है । मारैयप्रिय अमरेश्वरलिंग होने तक किसीकी परवाह नहीं है ।
(४१३) घर देखने से अकिंचन है और मन देखा तो संपन्न । धन देखा तो गरीब और मन देखा तो संपन्न । कूडलसंगमदेव शरण करुरणा रहित शूर सिपाही है, हमें किसीको क्षमा नहीं करना चाहिए ।
(४१४) अपनेको महान् माननेवाले महात्मा हैं इस जगतमें, इस बड़प्पनसे क्या होगा ? बड़ा छोटा यह शब्द मिटने पर ही गुहेश्वलिंग के शरण हैं ।
टिप्पणीः- कन्नड़ व्याकरण में शब्दों का कोई लिंग नहीं होता ! मानव पुरुष पुल्लिंगी है, और मानव स्त्री स्त्रीलिंगी, अन्य सारा विश्व नपुंसकलिंगी । किन्तु हिन्दीमें शब्दोंका ही लिंग होता है ! शरण शब्द भक्त इस अर्थ में पुल्लिंगी है तथा भगवान्की शरण जाना इस अर्थ में स्त्रीलिंगी । इसलिए मूल वचनके भाव –अनेक भाव - व्यक्त करना असंभव हो जाता है । " बड़ा-छोटा मिटते ही गुहेश्वरलिंगकी शरण है" यह वाक्य दूसरा भाव देता और, "बड़ा छोटा मिटतेही गुहेश्वर लिंगका शरण है । यह वाक्य दूसरा भाव देता है । किन्तु कन्नड़ वाक्य यह दोनों भाव देता है ।
( ४१५) स्त्रियोंकी आत्मामें क्या स्तन होते हैं ? ब्राह्मण की आत्माको क्या यज्ञोपवीत होता है ? अंत्यजोंकी आत्माने क्या झाड़ पकड़ रखी है ? तूने जो संबंध बांध रखा हैं वह यह जड़ मूढ़ लोग क्या जानें रामनाथा ?
टिप्पणीः- वचनकार मानव मानवमें कोई भेद भाव नहीं रखते थे । उनके लिए मानव मात्र एक थे । यदि कोई भेद-भाव है ही तो सावक प्रसाधकका था । उन्होंने सदैव यह कहा है तत्त्वतः यह सव विश्व, विश्वके मानव, तथा अन्य सव कुछ परमात्माका अंश है । यह भाव साधकको साम्य दृष्टि देकर नम्र बनाता है । अब सदाचार विषयकं वचन हैं ।
(४१६) आचरण रहित गुरु भूत है, आचार रहित लिंग शिलाखंड है, त्राचार रहित शैव योगी सामान्य मानव है और आचार रहित पादोदक पानी ! आचार रहित भक्त दुष्कर्मी है, क्योंकि शिव पद पर चढ़ने के लिए सीढ़ी ही साधन सोपान है । शिव पद पानेके लिए श्री गुरुके कहे सदाचार ही सोपान है ।