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वचन साहित्य-परिचय
चाहिये।
टिप्पणीः-अपनी श्रद्धाके अनुसार स्वीकार किए गए व्रत नियमादि अत्यंत महत्वके हैं । क्योंकि उसीसे हमारी श्रद्धादृढ़ होती है किसी नियमका अखंड रुपसे सतत पालन ही व्रत है।
(३६४) व्रत नामका एक दिव्य रत्न है । व्रत नामका एक तेजस्वी मोती है, व्रत जीवनका प्रकाश है, व्रत जीवनका शांति समाधान है। व्रतभंग उरिलिंगपेछिप्रियविश्वेश्वरको स्वीकार नहीं है ।
(३६५) मौत कभी नहीं छूटती यह जानकर भी व्रतभंगसे उसी दिन मरनेसे क्या लाभ ? निंदापात्र बनने से पहले शरीर छोड़कर चित्तमें प्रात्मलिंग प्रतिष्ठित कर मनक्केमनोहर संश्वेश्वरलिंगका रूप दो । .
टिप्पणीः--वचनकारोंका स्पष्ट कथन है कि व्रतभंगसे मृत्यु अच्छी है ।
विवेचन-साधकके लिए पथप्रदर्शक कौन है ? इस प्रश्नके उत्तरमें वचनकारोंका कहना है कि स्वानुभव और सद्भक्तोंका संग । दीक्षा गुरु कोई भी हो अंतरंगका अनुभव ही सच्चा गुरु है। अपने आपको जाननेसे वह ज्ञान ही गुरु है।
वचन-(३६६) कथनी करनी रहित गुरुके पास उपदेश लेने गये, तो वह बोले ही नहीं, (मैं) बोला तो (उन्होंने) सुना नहीं। अनंत कार्यका प्रारंभ कैसे हो भाई ! गूगोंकी भेंट-सी है। मेरे अंदर तो ज्ञानकी सुगंध और बाहर मुग्ध अवस्था यह कैसे ? हाथीका मदोत्साह अपने आप रहनेसे भिन्न होगा क्या गुहेश्वरा।
टिप्पणीः-ज्ञान ज्योति आत्मगत ही होती है । अंदर ज्ञान बाहर मौन ।
(३९७) शिववचन, गुरुवचन, प्राप्तवचन, सुनकर जीनो, उसे सुनोगे तो कृतार्थ हो जाओगे। तन, मन गलाकर, धुलाकर, भाव-भक्तिसे शरणोंका अनुभाव पाना ही मुक्ति है.। ऐसा न करके व्याकुल मनके गीत ही मन लगाकर सुनते रहोगे तो भला कोई उपदेश कैसे मिलेगा ? महालिंग कल्लेश्वरा (गुरुमुखपराङमुखोंका) संसार पाश नहीं टूटेगा।
टिप्पणी:--शिववचन-वेदवाणी ।
(३ ८) बिना संगके न आग पैदा होगी, न बीज पैदा होगा। विना संगके न यह देह पैदा होगी, न सुख ही पैदा होगा। चन्नमल्लिकार्जुनदेव तुम्हारे शरणोंका अनुभव संगसे ही प्राप्त है, उसीसे मैं परमसुखी होकर जी रही हूं।
टिप्पणी:--संग =सत्संग।
(३६६) अरे तुमसे क्या मैं प्रायु मागंगा ? मैं क्या इस संसारसे डरता हूं ? तुमसे क्या धनकी याचना करता हूँ ? वह तो परस्त्रीगमनका पाप-सा है ।