Book Title: Santoka Vachnamrut
Author(s): Rangnath Ramchandra Diwakar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 264
________________ साधनामार्ग-ध्यान योग २५१ यही अन्तर है । वचनकार सतत अपने अंतिम ध्येय स्वरूपपरशिव को ही अपने . सामने रखते हैं; किंतु अन्य ध्यानयोगी ऐसे किसी बंधनसे वाध्य नहीं हैं। वह नाद, विदु, ज्योति, अमृत, ओंकार, ऐसे अन्य अनेक प्रतीकोंको भी अपने सामने रखते हैं । तथा उनपर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं । यम नियम तो केवल तन-मनकी शुद्धि के लिएही स्वीकार किये जाते हैं। ब्रह्मचर्य दयाक्षांतिनं सत्यमकल्पता । अहिंसाऽस्तेय माधुर्य दमश्चेति यमाः स्मृताः ॥ ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा, दान, सत्य, अकल्पना, अहिंसा, अस्तेय, माधुर्य और . दम यह दस यम हैं ! तथा शौचमिज्या तपोदानं, स्वाध्यादोपस्थ निग्रहः । व्रतमौनोपवासंच स्नानंच नियमा दशाः ॥ शौच, यज्ञ. तप, दान, स्वाध्याय, उपस्थ निग्रह, व्रत, मीन, उपवास, और स्नान यह दस नियम हैं। किसी भी प्रकारके स्थिर देह विन्यासकोही आसन कहते हैं। देहका चांचल्य दूर करना ही इसका उद्देश्य है। प्राणोंको स्थिर करने के लिए वायुका जो निरोध किया जाता है उसको प्राणायाम कहते हैं।' इंद्रियोंको विषयोंसे संवरण करके उनको विषय निवृत्त करना अथवा इंद्रिय : जय प्रत्याहार कहलाता है । इन तत्त्वोंको वचनकारोंने अपनी साधनामें प्रयुक्त किया है । उसे किस रूपमें स्वीकार किया है, तथा किस प्रकार प्रयुक्त किया है यह वचनोंमें ही देख सकते हैं । वचन-(३४३) यम-नियमासन-प्राणायाम-प्रत्याहार-ध्यान-धारणा-समाधि यह अष्टांग योग है । इस योगमें उत्तर भाग और पूर्व भाग ऐसे दो भाग हैं । पहले पांचका पूर्व भाग है । ध्यान धारणा समाधि यह तीन उत्तर. भागमें हैं। इसका विवेचन इस प्रकार है-- अनृत, हिंसा, परधन, परस्त्री, परनिंदा, इनका त्याग करके, केवल लिंगार्चन करना यमयोग है। ब्रह्मचर्य से, निरपेक्ष होकर जीवनयापन करना, शिवनिंदा न सुनना, मानसिक, वाचिक तथा उपांशिंक इन तीन प्रकारकी इंद्रियोंसे . प्रणव पंचाक्षरीका जप करते हुए जीवनयापन करना... पाप भीरू होना, यह नियम योग है । सिद्धासन, स्वस्तिकासन, पद्मासन, अर्धचन्द्रासन, पर्यकासन, इन पांच आसनोंमेंसे किसी प्रासनमें सुस्थिर चित्त होकर, मूर्त रूपसे शिवार्चन करना आसन योग है..... इला पिंगलामें चलायमान रेचक पूरकका भेद न जानकर, मन और प्राणपर लिंगारोपण करके, • मन, पवन, प्राणोंको लिंगमें विलीन करके, हृदयकमल मध्यमें प्रणव पंचा क्षरीका उच्चारण करते हुए परशिव ध्यानमें तन्मय रहना ही प्राणायाम है। • सभी इन्द्रियोंको सधकर लिंगभिमुख कर लेना ही प्रत्याहार. है......

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