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साधना मार्ग - भक्तियोग
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"प्रारण है । जो सच्चे भक्त हैं वह तो ऐसी द्वैतकी बात नहीं कहेंगे । निजगुरू • स्वतन्त्र सिद्धलिंगेश्वरा ।
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(२८६) अरे ! गायको न पाकर खोजनेवाले बछड़े की भांति हूँ मैं । - अरे ! तुम मेरे मनको प्रसन्न बनानेकी करुणा करो न करुणा कर ! तुम मेरे -मनको सहारा देकर करुणा करो। इस प्रकार तुम मेरा कल्याण करो कूडल - संगम देव ।
(२८७) यदि तेरी कृपा होगी तो मूसल भी महुलाएगा । यदि तेरी कृपा • होगी तो सूखी गाय भी दुधार होगी । यदि तू प्रसन्न होगा तो विष भी अमृत - बनेगा । यदि तेरी कृपा होगी तो सकल पदार्थ सामने श्राकर खुल जाएँगे सहज- साध्य होंगे कूडल संगम देव ।
(२८८) जैसे शेर के मुंहमें मृगशावक फंसा है, साँपके मुँहमें मेंढक फंसा है - वैसे ही सारा लोक तेरी माया के जालमें फंसा है; यह देखकर भयसे तेरी शरण आया हूँ । अब प्रेमसे मेरी रक्षा करनेकी करुणा करो कूडल संगमदेव I
(२८१) मेरे सिर और तुम्हारे चरणों में अन्तर ही नहीं रहा सिरसे वह `चररण पोंछ-पोंछकर वह अन्तर समाप्त हो गया है । मेरे शरीरका कपट और मनके विकार सब तुम्हारे पादांगुष्टको रगड़से नष्ट हो गये है । कूडल संगमदेव - तुम्हारे श्री चरणोंके प्रकाशसे मेरे शरीरका अंधकार नष्ट हो गया है देख ।
(२०) मनोपूर्वक स्मरण करनेसे यह शरीर तुम्हारा हुप्रा । शरीर स्पर्श करके प्रालिंगित करनेसे, मन लगाकर संग करने से, स्त्री-संगके लिए स्थान ही - नहीं रहा । जनम-मरणका बंधन टूट गया । यह सब तेरी चरणसेवा के प्रतापसे है रामनाथा ।
(२ε१) तेरे स्मरणमें उदय है और विस्मरणमें अस्त । तेरा स्मरण ही 'मेरा जीवन है, तेरा स्मरण ही मेरा प्रारण है, मेरे हृदय में अपने चरणोंका निशान लगा दो मेरे स्वामी । मेरी वारणी पर षडाक्षरी लिख दो कूडल संगमदेव ।
(२२) पूजाका समय नियत नहीं है बाबा ! प्रातः कालमें ही पूजा करनी चाहिए, सायंकाल में ही पूजा करनी चाहिए ऐसा नहीं है । दिन-रातका प्रति'क्रमण करके पूजा करनी चाहिए। ऐसी पूजा करनेवाले का मुझे दर्शन करा दो गुहेश्वरा ।
(२३) न वार जानता हूँ न दिन, कुछ भी नहीं जानता । न रात जानता हूँ न दिन, कुछ भी नहीं जानता तुम्हारी पूजामें अपनेको भी भूल गया हूँ कूडलसंगमदेव |
(२६४) शिव कथा सुन-सुन करके संतुष्ट हुआ, शिव कीर्तन करता हुआ प्रसन्न हुआ, बिना थके शिव स्मरण किया, शिव सेवा की, शिव पूजाका विस्तार