________________
२४०
वचन-साहित्य-परिचय
किया, शिवशरण कहलाकर शिवका सर्वस्व शिवार्पण करके स्वयं शिव-रूप बने हुए भक्त को देख मेरे निजगुरु स्वतंत्र सिद्ध लिगेश्वरा । - टिप्पणी :-सतत परमात्मरत भक्तों के आंतरिक लक्षण ऊपरके वचनोंमें : कहे हैं । सर्वस्वका परमात्मार्पण, तदेक निरत ध्यान, सतत स्मरण, कालातीत पूजा आदि अब उनके बहिरंग लक्षण भी कहे हैं। :
(२६५) वाणीमें नामामृत, नयनोंमें रुपामृत, मनमें सतत स्मरणं; कानों में; तेरी कीर्ति-कथा भरी है कुडलसंगमदेवा अपने चरणकमलमें 'सौंदर्य सुषमाका भोजन देकर संतुष्ट भ्रमर बनाकर रख। . ...
(२९६) मन विलीन होनेसे मन तेरे प्रेममें पिघल कर कोमल होगया हो,.. स्पर्शसे रोमांच होकर रोम रोमसे आनन्द टपकता हो, आँखोंसे आनंदाश्रु लवते. हों, वाणी गद्गद् हुई हो यही भक्तिका प्रतीक है । यही तेरी भक्तिको द्योतक है कुडल संगमदेव वह मुझमें नहीं है, मुझे तुम ढोंगी मत समझो।
(२९७) न खेल करके, पैर थकते हैं, न देख कर आँखें थकती हैं । न सेवा कर हाथ थकते हैं, न गुणगान कर वाणी थकती है, और क्या चाहिए? क्या चाहिए ? तुम्हारी पूजा करके मन नहीं थकता, और क्या चाहिए कूडलसंगम देवा सुनो।
(२६८) हृदय भरकर फूटने तक, मन भरने तक, गाते-गाते वाणी तुतलाने तक अपना नामामृत पिलाओ मेरे परमपिता ! कलिकाके खिलनेकी भांति मेरा हृदय-कमल तेरे चरण-स्पर्शसे खिलने दो मेरे कडल संगम देव
टिप्पणी :-यह निःसीम भक्तिमय हृदयकी उमंगे हैं ऐक्यानुभव होने तक उसका समाधान असंभव है।
(२९६) आमके बागमें बबूलका पेड़ हूँ मैं। तुम्हारे शिव शरणोंके सामने . मैं अपनेको भक्त कहलानेकी निर्लज्जता दिखाता रहा हूँ। कूडल संगम देव मैं कैसा भक्त हूँ तेरे शरणोंके सामने ? __(३००) मैं भक्त नहीं हूँ बाबा ! मैं तो भक्तका स्वांग हूँ, खूनी कसाई किरात ये मेरे नाम हैं कूड़ल संगम देवा मैं तुम्हारे शरणोंकी संतान हूँ।
(३०१) सिंहके सामने क्या हरिणकी उछल कूद चलेगी ? प्रलयाग्निकः . सामने क्या पतंगका खेल चलेगा ? सूर्य के सामने क्या जुगनू चमकेगा तुम्हारे सामने मेरा खेल चलेगा क्या कलिदेव ? देव । __(३०२) तू ही मेरे माता, पिता, बंधु, बान्धव, सब कुछ है तेरे : अतिरिक्त मेरा दूसरा कोई नहीं कुछ भी नहीं कड़ल संगम देव जैसे चाहे वैसे
रखो! . . . . . ... (३०३) मेरे शरीरका स्वामी तू है; मेरे घरका स्वामी तू है मेरे धिनका :
.:.