Book Title: Santoka Vachnamrut
Author(s): Rangnath Ramchandra Diwakar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 254
________________ साधना मार्ग-भक्तियोग २४१ स्वामी भी तू ही है और मेरा ज्ञान और स्मरण भी तेरा ही है । मेरा विस्मरण और अज्ञान भी तेरा ही है। कूडलसंगमदेव "भृत्यापराचे स्वामिनो दंड" यह सोचकर देख मेरे स्वामी। . (३०४) मेरे गुणावगुणोंका विचार न कर, मैं क्या तेरे समान हूँ ? अप्रतिम महिम मैं तेरे समान हूँ ? अप्रतिम कूडलसंगमदेव तेरे बनानेसे बना हूँ मैं, मुझसे अप्रसन्न होगा क्या परम पिता ? (३०५) धन नष्ट हुआ तो तन तेरे समर्पण करूंगा। तन नष्ट हुआ तो मन तेरे समर्पण करूंगा। मन नष्ट हुआ तो भाव तेरे समर्पण करूँगा। भाव नष्ट हुए तो निर्भाव तेरे समर्पण करूँगा फूडलसंगमदेव चन्नबसवण्णका सेवक होनेसे मैं भी तुममें विलीन होकर शुद्ध बनूंगा मेरे स्वामी ! (३०६) भक्ति ही भोजन है, सत्य ही उसका व्यंजन है, ऐसा निजत्व ही . गुहेवर लिंगके सामने रखनेवाले संगवसवण्ण हैं। (३०७) मैं भक्त नहीं, मैं मुक्त भी नहीं, मैं तो तेरी सूत्रमें बंधी गुड़िया हूँ। मेरा पृथक् अस्तित्व है क्या ? मेरे मानाभिमानका स्वामी मेरी भूलोंका विचार करनेके पहले यश दो कूडलसंगमदेव । (३०८) मेरा अंतरंग तू है, मेरा बहिरंग तू है, मेरा ज्ञान भान तू है, मेरा स्मरण विस्मरण तू है, मेरी भक्ति तू है, मेरी मुक्ति तू है, मेरी युक्ति तू है, मेरा आलस्य तू है, मेरी परवशता तू है । समुद्रमें उतरने के बाद समुद्र कभी अपनेमें डूबे हुएके पैरोंके अवगुण देखेगा ? मेरा भला बुरा तू ही जानता है मेरे स्वामी ! तेरे चरण ही इसके साक्षी हैं और मेरा मन कूलसंगमदेवा । (३०६) मेरे शरीरको अपनी वीणाका दंड होने दो, मेरे सिरका तुंबा बना लो, शिराओंको तार और अंगुलियोंको मिजराव बना लो ! उसमेंसे तेरा दिव्य संगीत गंजने लगे, वत्तीस राग आलापने लगे, मेरे विकारोंको नष्ट करके अपना यशोगान गवालो कुडलसंगमदेवा । विवेचन-भक्ति नवविध है। उसमें श्रात्मार्पण अथवा आत्म समर्पण ही सबसे महान् है। प्रात्मनिवेदनमें भक्त सम्पूर्ण रूपसे अपनेको भगवानके हाथोंमें सौंप देता है। ऐसा करनेसे भक्तका अन्तःकरण परमात्मामें विलीन हो जाता है । वह परमात्माके हाथका यन्त्र बन जाता है । यह भक्तकी अत्यन्त उच्च स्थिति होती है। भक्तका परमात्मैक्य प्राप्त करनेके उपरान्त उस स्थितिको अद्वैत भक्ति अथवा ऐक्य भक्ति अथवा समरस भक्ति कहते हैं । वचन-(३१०) और कोई तुम्हारा स्मरण करेगा, मैं तुम्हारा स्मरण नहीं करता, क्योंकि तुम्हारा स्मरण करनेका साधन रूप मेरा मन ही स्वयं "तुम" बन गया है। और कोई तुम्हारी पूजा करेंगे, मैं नहीं करता, क्योंकि तुम्हारी पूजा करने

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