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वचन-साहित्य-परिचय विवेचन-वचनकारोंने सर्वदा आदि सत्य-तत्त्वको अत्यंत श्रद्धा-भक्तिले देखा है । जहां कहीं सृष्टि-रचनादिके विषय में लिखा गया है, लिंगकी इच्छाते, अथवा परशिवके लोला-विनोदार्य इस तृष्टिका निर्माण हुआ ऐसा लिन्ता है। (१) नित्य निरवय पर शिव, अथवा परमात्म, (२) अनंतर उनका स्मरण अपवा संकल्प, (३) चित् शक्ति, (४) सदाशिव (५) उसके बाद सांत्यके कमले पुरुष-प्रकृति आदि पच्चीस तत्त्व हैं। इस प्रकार विश्व-निर्माणके यह पांच खंड हैं। चौरासी लभ योनि, पुनर्जन्म आदि वचनकारोंको सम्मत है।