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साक्षात्कारीकी स्थिति
२०३ में महालिंग प्रकाश स्थायी होनेसे गुहेश्वरा तेरा शरण उपमातीत है।।
(१३५) मरकर जनमनेवाला नहीं, संदेह नामका अमंगल भी नहीं लगा। न साकार-निराकार है, न कायवंचक ही है और न जीववंचक ही, सदैव सहज रहता हूं देख ; संशय रहित, महामहिम कुडलसंगमदेवकी शरण गया हुआ शिव-शरण उपमातीत होता है ।।
(१३६) जैसे आकाश में छिपा सूर्य, पृथ्वीमें छिपी संपत्ति, म्यानमें छिपी तलवार, फलमें छिपा रस, वैसे ही शरणके शरीरमें छिपी परम पावन मूर्ति परात्पर सत्य वह स्वयं अपने आप बन गया है रे महालिंग गुरु शिवसिद्ध श्वर-- प्रभु।
(१३७) फल खा लेने के पश्चात् पेड़की किसको पड़ी है ? स्त्रीको त्याग देनेके अनंतर वह किसीके साथ भी रही तो क्या जाता है ? खेती छोड़ देनेके अनंतर भला उसमें कोई बोआई-कटाई करें तो क्या है ? चन्नमल्लिकार्जुनको जान लेनेके अनंतर इस शरीरको अागमें जलाया तो क्या, पानीमें बहाया तो क्या और कुत्तोंने नोच खाया तो क्या ?
(१३८) यह शरीर मुर्भाकर काला पड़ा तो क्या और खिलकर चमक उठा तो क्या ? अंतरंग शुद्ध होकर चन्नमल्लिकार्जुन लिंगैक्य होनेके अनंतर यह शरीर कैसा भी रहा तो क्या ?
टिप्पणी :-वचनकारोंकी दृष्टिसं यह शरीर केवल परमार्थका साधन मात्र है । सिद्धि प्राप्त होनेके पश्चात् उसका कोई मूल्य नहीं है । ऊपरके दो वचनोंमें यह बात बताई गयी है।
— (१३६) परतत्व में तद्गत होनेके अनंतर दूसरी बातें जानने न जाननेकी भ्रांति क्यों ? ज्ञानमें तादात्म्य होकर अज्ञान नष्ट होने पर 'मैं कौन हूँ' यह विचार कैसे ? गुहेश्वर में विलीन होकर भेदभाव मिटनेक अनंतर भला संगकी व्याकुलता कैसी ?
(१४०) आगमें झुलसे कुलथीकी भाँति हुअा हूँ रे ! जले हुए सूतकी गांठ बांधने का प्रयास भला कैसा ? गुहेश्वरा तुम्हारी स्थितिका यह ढंग है रे !
टिप्पणी :-पूर्णक्यके अनंतर पुनः भगवानसे मिलनेकी व्याकुलता नहीं रहती। ऊपरके वचनों में यह बात कही है।
(१४१) हाथमें दीपक पकड़कर भला अंधकारको क्यों खो ? पारसमरिण हाथमें रखकर भला रोटीके लिये परिश्रम और हाय-हाय क्यों करूं ? जिसकी क्षुधा निवृत्ति हुई है वह पाथेयका बोझ क्यों ढोय ? नित्य अनित्य जानकर भी भक्तोंके लिये मृत्युलोक और कैलासकी बात करना उचित नहीं है । अपने प्राप्तव्यको निश्चय जानकर उस निश्चय पर दृढ़ रूपसे अड़े रहे तो