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वचन- साहित्य- परिचय
करके उसीमें निश्चिन्त होकर स्थिर हो जा मेरे मनः
!.
(२५६) अरे मन ! जहाँ अचित्य, प्रखंड प्रकाश दिखाई देगा वही तेरा सत्य है । अरे मन ! जहाँ "तू' का बंधन नहीं, जहाँ सर्वत्र "मैं" हीं दिखाई देता है वहीं तेरा सत्य है । अरे मन ! जहाँ तू अपना सत्व देख सकता है वही ब्रह्मज्ञान है । वही मुक्ति है, वही हमारे गुहेश्वलिंगको जाननेकी सहज भक्तिका रहस्य है । अरे मन ! तू यह निश्चय जान, न भूल ! न भूल !!