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साधना मार्ग-ज्ञानयोग (२५०) केतकी-तंतुओंके जालसे भला हाथी पकड़ा जा सकता है ? सूखी पत्तियोंसे क्या दावानल वुझाया जा सकता है ? बर्फकी सेना सूर्यको घेर सकती है क्या ? अपने को जाननेके बाद भी पाप-पुण्य-लिप्त हो सकता है क्या निजगुरु स्वतन्त्र सिद्धलिंगेश्वरा।
विवेचन-आत्मज्ञानीको कर्मोका बंध-मोक्ष, पाप-पुण्यका लेप, स्मरणविस्मरण, ज्ञान-विज्ञानका दोष नहीं लगता। वैसे ही आत्मज्ञान, केवल ग्रंथावलोकन अथवा ग्रन्थाध्ययनसे नहीं होगा। उसके लिए दीर्घ, तीव्र साधनाकी आवश्यकता है । उसका ज्ञान प्राप्त हुआ कि मनुष्य निर्भय होगा, द्वन्द्वातीत, निःसंशय तथा स्थिरमति होगा । वह आत्यंतिक सुखका अधिकारी होगा । यह उस ज्ञानकी महिमा है।
वचन-(२५१) पिछले संसार सागरका अतिक्रमण किया, और अगले मुक्ति-पथ पर ज्ञानके नवांकुर फूटे । अब नहीं डरूँगा, नहीं डरूँगा । मेरे मनोमूर्ति चंद्रेश्वरय्यकी करुणा हुई और मैंने उस महामाया पर विजय प्राप्त की।
(२५२) मनुष्यको प्रसन्नकर लिया तो उससे अनेक प्रकारके लाभ और पदवृद्धिकी आशा है और परमात्माको प्रसन्न कर लिया तो इह-परमें परम सुख है । यही परतत्वका अस्तित्व ! अमरेश्वर लिगमें विलीन हुआ तो यही शाश्वत सुख है।
टिप्पणी :-इस प्रकार अभय और शाश्वत सुख जिस ज्ञानसे प्राप्त होगा उसके लक्षण क्या हैं ?
(२५३) देह भाव मिटनेके पहले जीव-भाव नहीं पाएगा, जीव-भाव मिटने के पहले भक्ति-भाव उदित नहीं होगा, भक्ति-भाव उदित होनेसे पहले ज्ञान नहीं होगा, ज्ञान होनेसे पहले अपना प्रतीक नष्ट नहीं होगा, प्रतीक रहते हुए मायाका आवरण नहीं हटेगा, जीवके वसनरूप काय-भावको उतारनेका रहस्य जाननेके बाद गुहेश्वलिंगका ज्ञान होना साध्य है सिद्धरामय्य ।
(२५४) जिससे सर्वप्रपंचकी निवृत्ति होगी वही ब्रह्मज्ञान है। जिससे केवल निश्चय होगा वही ब्रह्मज्ञान है । जिससे कूडलसंगमदेवके अतिरिक्त और किसीका भान नहीं होगा वही ब्रह्मज्ञान जानो।
(२५५) अरे मन! तू जब अपना सत्य स्वरूप जान लेगा तब तुझे सत्य कहूँगा, वह केवल एक ज्योति है, वह वर्णनातीत है, उसको खोजते समय जहाँ तुझे पूर्ण निश्चय होगा वही पूर्णत्वको आधार-शिला है । तेरे सत्यका जहाँ निश्चय हुआ, जहाँसे आगे जाना असंभव हुआ, जहाँ तू निर्गत हुआ वही सम्यक् ज्ञानका दर्शन है। उस दर्शनके अखंड प्रकाशमें हमारे गुहेश्वरके चरण खोज