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वचन-साहित्य-परिचय धनलिंगकी पोरसे हमें मिले साधन क्रमको न जानकर यहां कर्म किया तो भला.. वहां अकर्म कैसे होगा वह ? जैसे स्वर्णकलशका अंदर बाहर नहीं होता वैसें. मृत्युलोक और कैलास-लोक ऐसा भी भेद नहीं है । जहाँ प्रात्मनिश्चय हुआ वहीं : कैलास है, जहां सत् तत्वको जाना वहीं कैलास है, यह समरस भक्तकी मुक्ति है: यह मेरे प्रिय इम्मडिनिष्कलंक मल्लिकार्जुन का दिया ज्ञान है। .:
टिप्पणी :-इस वचनमें यह स्पष्ट कहा गया है "प्रात्मज्ञान ही मुक्ति" : है। इस वचनमें मुक्ति कोई स्थान नहीं किंतु चित्तकी एक स्थिति है यह अत्यंत स्पष्ट रूपसे कहा है।
(२४६) अपनेको असत्य और दूसरोंको सत्य' कहकर दिखलाने वाले मूर्खकी बात पर कौन और कैसे विश्वास करेगा ? अपने में छिपी महानताको न जानकर आकाशमें परब्रह्मको ढूंढनेकी माथा-पच्ची करके "पा लिया" कहने वाले मूल् को क्या कहा जाय अंबिगरचौड़या ।
टिप्पणी:-अपनेमें आत्मानुभवकी साधना न करके पर-तत्वका ज्ञान प्राप्त 'करनेका अन्य प्रयास करना व्यर्थ है। प्रात्माको, आत्मासे, आत्मामें ही देखा जा सकता है, अन्यत्र नहीं।
(२४७) यदि अग्निमें ज्वाला और उष्णता नहीं तो भला वह तृणा.. काष्ठादिको कैसे जलाए ? यदि प्रात्मामें ज्ञान न रहा तो कर्ममें स्थित बंध- .. मोक्ष कैसे मिटेंगे? इन द्वंद्वोंको जानकर मन इनका अतिक्रमण कर गया है. 'बारेश्वरा ।
टिप्पणी:-मन द्वंद्वोंका अतिक्रमण कर गया-परतत्वको पहुंच गया। द्वंद्वातीत हो गया। . (२४८) अपने अपनेको जाननेसे पहले कुछ भी पढ़ा तो क्या? कुछ सुना . तो क्या और कुछ कहा तो क्या ? जैसे सोनेका मुलम्मा चढ़ाया हुआ ताँबा वह भला अंदरसे कसानेके पहले कैसा रहेगा ? संदर शब्द जाल फैलाकर प्रवचन करने वाले सब मायाके जंजालमें अंधोंकी भांति भटक गये हैं-निजगुरु . स्वतन्त्र सिलिगेश्वरा, तुम्हें न जाननेवाले अंधे हैं । : . (२४६) अरे ! सूखी गैया कभी दुधार हो सकती है. क्या ? सूखे ठूठी कभी कोंपल फूट सकती है क्या ? अंधेको दर्पण दिखाया तो भला वह अपना मुखावलोकन कर सकेगा ? गंगेको संगीत सिखाया गया तो क्या वह गा सकेगा? ऐरे-गैरेको शिव-तत्वका उपदेश दिया, शिव-दीक्षा दी तो क्या वह शिव-पथ पर चल सकेगा ? शिव-ज्ञान-संपन्नको हो शिव-सत्पथ संभव है, तेरे आत्मीयोंके अतिरिक्त अन्योंको निरवय शून्यमेंसे जानेवाले शिव-सत्पथपर चलना संभव कैसे होगा ? अविवेकियोंको शिवैक्य संभव है क्या संगमवसवण्ण ?