________________
मुक्ति की इच्छा
२१७०
हो सके इस भांति तुममें कब विलीन हो जाऊंगा कपिल सिद्ध मल्लिकार्जुना । टिप्पणी :- इन तीन वचनों में दिखाई देनेवाली व्याकुलता जैसे-जैसे बढ़ती जाएगी परम सुखकी संभावना भी बढ़ती जाएगी
(१८८) अपने झुंडसे अलग पड़कर पकड़ा गया हुआ हाथी जैसे अपने झुंडका स्मरण करता है वैसे स्मरण करती हूं मैं ! बंधन में पड़ा हुआ सुरगा जैसे अपने अन्य बंधुयोंका स्मरण करता है वैसे स्मरण करती हूं मैं ! प्यारे ! यहां ग्राकर अपना ठाव दिला मेरे चन्नमल्लिकार्जुना ।
(१८९) विश्वासका मन तुझमें, निश्वासका मन तुझमें, प्रेमका मन तुझमें, लालन-पालन और आकुल व्याकुल मन तुझमें, चिताओ जलने - गलनेवाला नन तुझमें और मेरी पंचेंद्रियां भी आगते प्रातिगित कपूरकी मिलाले नेरे चन्ननल्लिकार्जुना ।
भांति प्रपने में
(१९०) किल- बिलाकर बोलनेवाले विहंगवृंद क्या तुमने देखा है उसको ? व्याकुल-विह्वल स्वरले कुकनेवाली कोयल क्या तुमने कभी देखा है उसको ? झूम-झूमकर और चूम-चूमकर मंडरानेवाले भ्रमर ! तुमने देखा है ? मानत सरोवर में किलोलें करने वाले हंसो ! क्या तुमने देखा है ? गिरिगुहात्रों में जा घुसकर खोजनेवाले शिकारी ! तुमने देखा है ? कहां है वह चन्नमल्लिकार्जुन कहो न !
( १९१) सारा वन तू है, वनमें रहनेवाले वृक्षलताएं तू है, उसमें खेलनेवाले खग-मृग-कृमि-कीटक सब तू है चन्नमल्लिकार्जुना सर्वव्यापी होकर तू अपना दर्शन दे !
(१२२) मनका पलंग बनाकर चित्तका अलंकार करूंगी मैं तू ना उस पर ! मेरा शिवलिंग तू आ उस पर । मेरे भक्त-वत्सल तू था । मेरे भक्त दैहिक देव ! आओ न ! मेरे अंतरंग में ग्राश्रो बहिरंग में आओ, सर्वांगको व्याप लो मैं ही बुला रही हूं उलिमुलेश्वरा ।
टिप्पणी : - इन पांच वचनोंमें भक्तकी व्याकुलताकी झलक है । वियोगिनी के विह्वल हृदयकी भांति मुमुक्षुका हृदय भी अपनी ध्येय-मूर्तिके लिए तड़पता है | उस स्थितिमें साबक मुझे शुद्ध करो, मेरी रक्षा करो, मुझे शांति दो ऐसी प्रार्थना करता है ।
( १९३) वनमें गयी हुई गाय अपने बछड़े के वियोग में व्याकुल होकर गोठेमें श्राते ही प्यारसे उसको दूध न पिलाएगी तो वह बछड़ा क्या करेगा ? कहां जाएगा ? मैं कर्म देह धारण करके इस भव-सागरमें डूब रहा हूं और इस प्रज्ञान जन्य भव बंधनोंको खोल करके मेरी रक्षा करनेकी चिन्ता यदि तुझे नहीं है तो मैं भला क्या कर सकता हूं प्रखंडेश्वरा ।