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वचन-साहित्य परिचय
टिप्पणी:-तप करनेके लिये जो पर्वतादि एकांत में जाते हैं वह लोट पाते है किंतु परमधाममें गये हुए लोग लौटकर नहीं पाते । अर्थात् जहाँस लौट आते हैं वहाँ वह नहीं है।
(४०) सकल विस्तारका रूप है तुममें और तुम हो छिपे मेरे मनमें । यह कैसे ? पूछो तो सुनो ! दपगमें हाथी के समा जानकी तरह ! तुम भक्त मनोवल्लभ होनेसे मेरे मन के अन्तिम छोरपर जा छिपे ही अखंदेश्वरा ।
(४१) मिट्टी हाथमें लेकर देखू तोतू विश्वव्यापी है, हाथमें नुवर्ग लेकरके देखू तो तू हिरण्यगर्भ है, और स्त्रीको लेकर दे तो तू विविध शक्तिकी मूर्ति है । तव तेरे देवनेकी दक्षिणा कैसी दूं? तुझे पाने के लिये सतत कर्ममें निरत, सद्भावनामें शुद्ध, धरा हुमा (प्राप्त कम) न छोड़फर, छोटा हुया न धरते हुए निश्चित सत्य-ज्ञानमें संपूर्ण विलीन होकर (मैं) रहा तो बिना भूले मुझने दुगुना प्रेम करके मेरे पास पाएगा तु निःफलंफमल्लिकार्जुना।
टिप्पणी: ---विविधयक्ति उत्पत्ति-स्थिति-लयाक्ति । न बचनका यह अर्थ माना जाता है कि साधकके कुछ देने करने सत्य-तत्त्वका साक्षात्कार नहीं होता। उनके लिये निर्मल मन, निप्लायुक्त कर्म, दुर्मागको छोड़कर सन्मार्गका ग्रहण, गुट सत्यनान यहीवन है।
(४२) "उसमें कर्म-निष्ठा है, वह ज्ञान-संपन्न है" ऐसा कहनेकी भला क्या श्रावश्यकता है ? यह तो उसकी बोल-चाल मेंसे फूट पड़ेगा। बोल-चाल जिसकी शुद्ध नहीं होती उसमें वह नहीं है रे प्रसंडेश्वरा। .
विवेचन-प्रवतक सत्य, भक्ति, शुद्ध हृदय, श्रद्धा, संशयातीत ज्ञान, प्रादि जिन शरणों में है उनमें परमात्माका वास है यह कहा गया । अब, केवल उस चिन्मय सत्य-तत्त्वकी ही उपासना करो, उसे छोड़कर जो अनेक देवी देवताओं की पूजा अर्चा करते हैं, वह सब परात्पर सत्य, अथवा परमात्मा नहीं है, यह कहनेवाले वचन देखें । वचनकारोंका यह स्पष्ट मत है कि वह सर्वव्यापी है किंतु विशेष रूपसे भक्तांतर्यामी है । ___ वचन-(४३) शून्य, मूर्ति-रूपसे शरण हो कर सड़ा है । उसकी विद्याबुद्धिसे ब्रह्म की उत्पत्ति हुई। उसकी शांति, सहनशीलतासे विष्णुका प्रादुर्भाव हुग्रा । उसीके क्रोधसे रुद्र पैदा हुप्रा । इस प्रकार यह तीन पीठ बने; ऐसे शरणोंको जानकर मैं उनकी शरण जाता हूँ कूडल संगमदेव ।
टिप्पणी:---१ श्रादि सत्य वस्तुको ही यहाँ शरणके रूपमें दर्शाया है। उस मूल तत्त्वके सगुण रूप ब्रह्म-विष्णु-रुद्र बने ऐसा माना गया है । वचनकारोंका स्पष्ट कहना है कि सत्यको जानने के लिये हमें ब्रह्मा, विष्णु, महेशका भी अतिक्रमण करना चाहिये।