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तुलनात्मक अध्ययन
१३७ मौत ही मार्गदर्शक है।"
वैसे ही महाराष्ट्र के अनुभावियोंके अनुभव भी कम उद्बोधक नहीं हैं ।' ज्ञानदेवजी महाराष्ट्र के संतोंके गुरु-स्थानमें हैं । ज्ञानदेवजीके पहले महाराष्ट्रमें महानुभव पंथ था। मुकुंदराय नामके एक संत महात्माने ज्ञानदेवके पहले भी कुछ संत-साहित्य निर्माण किया था। किंतु महाराष्ट्र के अनुभावियोंने. ज्ञानदेव अथवा ज्ञानेश्वरको ही अपने गुरु-स्थानमें माना है । ज्ञानदेव, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम, तथा रामदास आदिके वचन बड़े उद्बोधक हैं। रामदास और तुकाराम छत्रपति शिवाजीके समकालीन थे और ज्ञानदेव तथा नामदेव तेरहवीं सदी में हुए। इन सबका ब्रह्मका वर्णनतो उपनिषदोंका मराठी भाषांतर-सा है । अतः उसका विचार अनावश्यक विस्तार है। किंतु साक्षात्कारके विषयमें उनके विचार अत्यंत मननीय हैं । ज्ञानेश्वरी मराठी भापाका सर्वोत्कृष्ट ग्रंथः है । वह गीता पर लिखा हुआ स्वतंत्र भाष्य है। इसके अलावा भी ज्ञानेश्वर महाराजने 'अमृतानुभव' नामसे एक काव्य ग्रंथ लिखा है और अभंग शैलीमें कुछ भजन भी लिखे हैं । ज्ञानेश्वरी भगवद्गीता पर लिखा हुआ महाभाष्य है । अमृतानुभव वेदांत-विषयक स्वतंत्र ग्रंथ है । और भजन विविध अनुभव हैं । यह सब उसमा-रूपक आदिकी खान हैं । ज्ञानेश्वर महाराजने साक्षात्कारके विषयमें लिखा है, "प्रात्म-दर्शन होते ही अात्मा-परमात्मामें वैसे ही ऐक्यत्व प्राप्त करेगा जैसे पानी सूख जाते ही पानीमें पड़ा हुआ प्रतिबिंव मूल विवमें ऐक्यत्व प्राप्त करेगा ! घड़ा टूटा कि घटाकाश विश्वाकाशमें विलीन हो जाएगा। जलाने के लिए कुछ रहा नहीं कि आग अपने आप बुझ जाएगी। वैसे ही परमात्मा ही प्रात्यंतिक पद है। वहां पहुंचा कि लौटना असंभव है। तव सव इंद्रियां निष्प्रभ हो जाती हैं । मन अंतःकरण में विलीन हो जाता है । ध्येय-वस्तु चित्त में स्थिर हो जाती है । इससे परमानंदका अनुभव होता है । परमात्मासे ऐल्यानुभव हुप्रा कि आनंद-साम्राज्यका स्वामित्व मिला। सहस्रसूर्य के प्रकाशयुक्त चिद्वस्तु चिदाकाशमें प्रकाशमान होगी। साक्षात्कारी आनंद-सरोवरके राजहंसकी तरह लोलायमान होगा।" ज्ञानदेवने अपनी काव्यात्मक स्फूर्तिसे साक्षात्कारका वर्णन किया है । नामदेवने केवल अभंग लिखे हैं। किंतु उन्होंने अनंत अभंग लिखे हैं । उन्होंने लिखा है, "साक्षात्कारकी सामर्थ्य भगवान की कृपा ही है । भगवानके अनुग्रहः बिना यह असंभव है। अंतःकरण में परमात्माका साक्षात्कार हुआ है । इसलिए नामदेव सदैव प्रानंदमें रहता है। अनंत करोड़ गुपोंगा सम्मिलित तेज अंतःकरणको प्रकाशित करता रहता है। उस तेज के सामने पार्थिव सूर्य-चंद्र फीके पड़ गये हैं। भगवान, नामदेवके पीछे वैसे ही सोते हुए पाए हैं जैसे गाय अपनी वछियाके पीछे दौड़ती अाती है। अब