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वचन-साहित्य-परिचय
अत्यंत निकट साहचर्य के कारण नामदेव ही भगवान हैं, भगवान ही नामदेव हैं ! बादमें एकनाथ महाराज हुए। उन्होंने 'एकनाथी भागवत' नामका ग्रंथ लिखा है। उसमें अद्वैतानुभवका वर्णन है। बसवेश्वरने अपने में ऐक्यानुभवके पुलक, स्वेद, कंप, अश्रु, आनंद, गद्गद्, दीर्घ स्वर, आदि जिन गुणोंके अभावको अनुभव करके अत्यंत व्याकुलतासे लिखा है, उसीका एकनाथने सुंदर वर्णन किया है । एकनाथने लिखा है, "पुलक, स्वेद, कंप, अश्रु, आनंद, गद्गद दीर्घ स्वर यह सब ऐक्यानंदके लक्षण हैं। उस समय भक्त शतकोटि रोमकूपोंकी अांखें बनाकर वह दिव्य दृश्य देखता है । उस समय समग्र विश्व मानो स्वर्गीय दिव्य पोशाक पहनता है । अांखोंके सामने सतत आत्म सूर्य प्रकाशता रहता है। तब सव पुजापा परमात्माके ही रूपमें परिवर्तित हो जाता है । सब परमात्ममय हो जाता है। उस समय सारा द्वंद्व मिट जाता है।...... समाधिका अर्थ होशका अभाव नहीं है । परब्रह्ममें पूर्ण और निरंतर जागृत रहना ही समाधि है । वह नित्य साक्षात्कार है।" समर्थ रामदासने 'दास वोध' नामका ग्रंथ लिखा है । उस ग्रंथमें उन्होंने साक्षात्कारके विषय में लिखा है, "उस हालतमें सब पाप लय हो जाएंगे । जन्म-मरणका चक्र नष्ट होगा। संपूर्ण प्रात्म-समर्पण होनेके बाद परमात्माका निःसंशय ज्ञान होगा। वह ज्ञान ही सवकी गुप्त निधि है। वही सवकी सुखश्री है । वह प्राप्त होते ही साधक आंतरिक अानंदसे संतृप्त हो जाएगा । तब सर्वत्र ब्रह्मका दर्शन होगा। वाही चर्मचक्षु मिटेंगे और अंतःचक्षुत्रोंकी दिव्यदृष्टि खुलेगी । सर्वत्र सत्यका प्रकाश दिखाई देगा। दिव्य दर्शन होगा।” इन सब संतोंमेंसे संत तुकारामने अपने अनुभव अत्यंत विस्तृत रूपमें लिखे हैं। वह तत्वतः अद्वैत मानते हैं किंतु वह द्वैत भक्त हैं। उन्होंने कई बार कहा है, "मुझे अंतिम सांस तक अपना सेवक बनाये रख।" वह जनम-मरण रहित मुक्तिसे भी भवगानका भक्त होकर अनंत बार जन्म लेना अच्छा मानते हैं । उन्होंने हजारों अभंग लिखे हैं । उन्होंने अपने अभंगोंमें लिखा है, "हमें जो अपनत्वका भान है वही अहंकार है। उसी अहंकारके कारण ज्ञान नहीं होता। अहंकार ही ज्ञानकी रुकावट है । तुम यह देखते हो कि जब बच्चे में अपनत्वका भान होता है मां उसकी फिक्र करना छोड़ देती है।... ' पानीका जव एक बार मोती बन जाता है। वह फिरसे पानी नहीं बन सकता। दहीको मथकर जब एक बार मक्खन निकाल लेते है फिर वह मक्खन दही नहीं बन सकता।
और जब एक बार साक्षात्कार हो जाता है फिर वह सामान्य मनुष्य नहीं हो सकता ।..." भगवान है, यह बोध होना दूसरी बात है; और उसका साक्षाकार होना दूसरी बात । साक्षात्कार के प्रकाशके विना सब व्यर्थ है। मैं वह अनुभव चाहता हूं। ..... साक्षात्कारका अनुभव वैसा ही है जैसा गूंगेका