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परमात्मा अथवा परात्पर सत्य
वायुको पकड़कर, आकाशका अतिक्रमण कर, मध्याकाशके शून्यमें खड़े होकर देखनेसे, सर्व-शून्य निराकारीकी निराकार स्थिति दीख पड़ेगी। उस निराकार स्थिति में वसव प्रभु आदि शिव-भक्त विलीन हो गये हैं, यह जानकर स्वतंत्र सिद्धेश्वर भी उसमें विलीन हो गया ।
टिप्पणीः--बसव प्रभु श्री वसवेश्वर और अल्लमप्रभु दोनों कर्नाटकके 'महान शैव संत हैं।
इस वचनका अर्थ करते हैं कि पंच महाभूतोंका अतिक्रमण करके निर्विकल्प -समाधिमें स्थिर होनेपर परमात्माका प्रत्यक्ष दर्शन होता है ।