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वचन-साहित्य परिचय हुई कि साधक मुक्त हुग्रा । वह सिद्ध हुग्रा । तभी उसको जीवन्मुक्त कहते हैं । साक्षात्कारका अर्थ आध्यात्मिक जगतके आत्यंतिक सत्यकी प्रत्यक्ष प्रतीति हैं । उसीके स्वानुभव,अनुभूति, अनुभव,अनुभाव,यात्म-साक्षात्कार, आत्मज्ञान,अपरोक्षज्ञान, अपरोक्षानुभूति, ब्रह्मज्ञान, ब्रह्म-साक्षात्कार, ब्रह्मानुभव आदि अनेक नाम हैं । किंतु वचनकारोंने इसे अनुभाव कहा है । परमार्थ मार्गमें ऐसा अनुभव मुख्य है । वही वचनकारोंका ध्येय रहा है। वचनकारोंने यह ध्येय अपनी आंखोंके सामने रखकर उसकी साधना की है। वचनकारोंकी दृष्टिके सामने यह ध्येय अत्यंत स्पष्ट रूपसे था। इस विपयके अनेक वचन मिलते हैं। उन्होंने जगह-जगह बारवार यह कहा है कि विना साक्षात्कारके जप, तप, ध्यान, धारणा सब व्यर्थ है। उनकी दृष्टिसे अनुभावके अभावमें ये सब योग, जप, तप आदि ठीक वैसे ही व्यर्थ हैं जैसे सूर्य, चंद्र-तारकायोंके अभावमें आकाश, सुगंधके अभावमें सुमन, प्रतिभाके अभावमें काव्य, मस्तकके अभावमें धड़। अनुभावके अभावमें सारा प्रयत्न व्यर्थ है। निस्तेज है। निरर्थक है । जैसे वृक्षकी परीक्षा उसके फलसे होती है वैसे ही विद्याका परीक्षा उसके परिणामसे होती है । अध्यात्म विद्या अथवा
आध्यात्मिक साधनाकी परीक्षा उसके परिणामस्वरूप साक्षात्कारसे होता है। इंद्रियातीत प्राध्यात्मिक सत्य साधकके अनुभवसे ही सिद्ध हो सकता है। साक्षात्कार इसका प्रमाण है । अर्थात् साक्षात्कार ही सब प्रकारकी श्राध्यात्मिक सावनाकी सिद्धि है । विना इसके कितना ही जाप करो, कितना ही तप करो, कितना ही ध्यान-धारणा करो, कितनी ही पूजा-अर्चा करो, वह सब व्यर्थ है। वचनकारोंने इस तथ्यको अत्यंत तेजस्वी भापामें अपने लोगोंके सामने रखा है। उन्होंने स्पष्ट शब्दोंमें कहा है, जीवन भरकी गुरु-लिंग-जंगमपूजा और प्रसादपादोदक सेवनसे क्षणभरका अनुभाव महत्वका है। अनुभावका वर्णन करते समय अक्कमहादेवीने "वही मेरे स्मरणकी निघि थी। वही मेरे ज्ञानका निचोड़ था । वही मेरे पुण्यका फल था । वही मेरा भाग्य था । वही मेरी आंखोंमें घरकरके वसा हुप्रा ज्योति-प्रकाश था । वही मेरे ध्यानकी ढ़ता थी। वही मेरा प्रानंदोत्सव था।" आदि शब्दोंमें अपना धन्यभाव दर्शाया है ।
साक्षात्कार वचनकारोंकी जीवन-सावनाका अंतिम साध्य था। साक्षात्कार वचनकारोंके जीवन का पुण्यफल और आनंदोत्सव था। साक्षात्कार ही वचनकारोंके जीवन-प्रकाशका महाप्रकाश था। साक्षात्कार ही वचनकारोंके पूर्णत्वकी बुनियाद और उसका प.लग था। साक्षात्कार ही उनके जीवन का, निचोड़ ना। साक्षात्कार ही उनके मान-ध्यानका पूर्णत्व था । और वह उन्होंने पाया । और जो पद उन्हें पाना या वह सब प्राप्त करके वह वैसे ही रहे जैसे मछली पानी में दबकर भी अपनी नापामें पानी न जाने देते हुए रहती है। सदैव चल