________________
वचन-साहित्य-परिचय याए वह औरों के मार्गदर्शनके लिए जैसे के तैसे कहे। इन अनुभव-गोष्ठियोंमें जो परस्पर निरूपण हुया उन्होंने वचनोंका रूप ले लिया। उसीसे वचन-साहित्यका महासागर बना। इसलिए वननकारोंके जीवन के विपय में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है। जो है वह नहींके बराबर है। वह केवल कुछ संकेत भर है । यागे कुछ वचनकारोंके जीवन के वारमें जो कुछ जानकारी दी है वह उनके वचनोंको समझ लेने की दृष्टिसे संकेत रूप ही है । उनके जीवन की ओर वह इंगित मात्र है।
वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व दर्शाते समय पिछलेपरिच्छेदमें हमने लिखा है कि २१३ वचनकारों में २८ देवियाँ थीं। उनमेंसे दो-चार देवियोंके वचन उनके अपने नामसे ही मिलते हैं । जैसे, लिंगम्मा। यहां मुक्कायक्क, मोलिगये मारय्यकी धर्मपत्नी महादेवीयम्मा, उडुतडीकी अक्क महादेवी, सती लक्कम्माके जीवन के संकेत चिन्ह ही दिये जा रहे हैं।
(१) मुक्तायकका, अजगण्णकी वहन । अजगण्ण एक उच्चकोटिका साधक था। मुकायकाने उसी को अपना गुरु बनाया था। भाई-बहन दोनों साक्षाकारके लिए अपनी-अपनी योग्यतानुसार साधना कर रहे थे। इसी बीचमें अजगणकी मृत्यु हो गयी। अपने भाई और गुरुकी मृत्युसे मुक्तायक्का बावली हो गयी । इस दुःखसे उसका हृदय तड़प रहा था। वह प्रलाप कर रही थी। तभी अल्लम प्रभुसे उसका साक्षात्कार हुआ। उन दिनोंमें सिद्धावस्थाप्राप्त अल्तम प्रभु भटक रहे थे। अल्लम प्रभुने मुक्तायक्काका प्रलाप सुना। अल्लम प्रभु जान गये कि यह ज्ञानी है । अल्लम प्रभु उनसे बातें करने लगे । यह संवाद 'यून्य संपादने' नामक ग्रंथके २२ से ३५ पृष्ठ तक प्राप्य है। यह सारा प्रसंग अत्यंत तात्विक, उदात्त और उद्बोधक है । अल्लम महाप्रभु पूछते हैं, "कितनी बहनोंके भाई नहीं मरते ? मुक्तायक्काकी तरह ऐसा प्रलाप करनेवाली वहनें कितनी है?"
"अजगणने मेरी अांखें बांधकर दर्पणमें तेरा योग दिखाया था रे !" मुक्कायक्काने उत्तर दिया।
अगगण आध्यात्मिक मार्ग में भी मुक्तायक्काके अग्रज थे । मुक्तायक्काका प्रलाप जान-मार्ग के अनजके लिए ही विशेष था। अल्लम प्रभुने पूछा, "खिला हुमा मस्तक हथेली पर रखकर अश्रुनोंके मोती पिरोनेवाली तू कौन है ?"
___ "मस्तक खोकर प्रकारानेवाली यह ज्योति मेरे अग्रजकी है !" मुक्तायक्का ने, "मैं अजगणकी बहन हूँ" यह कहते हुए अजगण्णकी चिन्मय प्रात्माका भी परिचय दे डाला। ___ "तू जानी है, ऐसा दुःख न कर।" अल्लम प्रभुने कहा ।