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साक्षात्कार
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साक्षात्कार कहते हैं। साक्षात्कार करनेकी इच्छा अथवा इस विविधतापूर्ण विश्वकी तहमें क्या है, यह जानने की इच्छा मानवमात्रका जन्मजात स्वभावसा हो गया है। प्रत्येक युगमें इसका प्रयास हुआ है । प्रत्येक देशमें इसका प्रयास हुआ है। और इस प्रयासमें किसीने जो पाया उसको साक्षात्कार कहा तथा जिसने कुछ पाया उसको साक्षात्कारी अयवा अनुभावी कहा ।
इस जिज्ञासाके कारण मनुष्यने भौतिक क्षेत्रोंमें भी पर्याप्त खोज की है। इस क्षेत्र में भी उसने बहुत-कुछ पाया है। इस क्षेत्रमें भी ऐसे अनुसंधान करनेवालोंने जो साक्षात्कार किया है वह सबने नहीं किया। इतना ही नहीं, वह साक्षात्कार जन-सामान्यको चक्कर में डालनेवाला है। जन-सामान्यके मनको चमत्कृत कर देनेवाला है। किंतु इससे हमें कोई सरोकार नहीं है । क्योंकि इस पुस्तकका विषय कन्नड़ वचन-साहित्य है । किसी भी वचनकारने भौतिक जगत्में न सत्यका अनुसंधान किया है न सत्यका साक्षात्कार । क्योंकि उनका विश्वास था कि भौतिक जगत्में किये गये सत्यके अनुसंधानसे भौतिक सुखके अंबार खड़े किये जा सकते हैं किंतु उससे आंतरिक समाधान नहीं मिल सकता। हार्दिक प्रसग्नता नहीं मिल सकती । इस हार्दिक प्रसन्नताके बिना भौतिक वैभवका अंबार भी सिरपर बोझ सा है। इससे शाश्वत सुख नहीं मिल सकता । नित्यानंद नहीं मिल सकता । इसलिए उन्होंने वह मार्ग छोड़ दिया। भौतिक विश्वकी खोजसे विमुख हुए। जो ब्रह्मांड में है वही पिंड में भी है तव पिंडमें ही क्यों न खोजें ? अपने हृदय-गह्वरमें घुसे । वहां खोज की । चित्त सागरकी एक-एक वृत्तिका निरीक्षण-परीक्षण किया। उन दृत्तियोंको रोका । और वहाँ सत्यका साक्षात्कार किया। अपने ही हृदय-साम्राज्यके साम्राट् वने । और उस महान् शून्य सिंहासनसे घोषणा की~-यही जीवनका आत्यंतिक महान उद्देश्य है । यही मानव मात्रका सर्वोत्कृष्ट लक्ष्य है। यही शाश्वत सुखका स्थान है। हमने यह पाया है। पारो ! तुम भी पायो ।
मनुष्यने अवतक सत्यकी जितनी खोज की उतनी और किसीकी नहीं की। तब यह सत्य क्या है ? सत्य किसको कहते हैं ? सत्यकी खोजका क्या अर्थ है ? यह जो विश्व हम देखते हैं वह विविधतापूर्ण है। वार-वार बदलनेवाला है। अर्थात् परिवर्तनीय है । इस परिवर्तनीय विश्वके मूल में एक अपरिवर्तनीय तत्व है । कभी न वदलनेवाला एक तत्व है। उसको सत्य कहते हैं। उस तत्वकी खोजही सत्यकी खोज है । अथवा सत्यका अनुसंधान अथवा सत्यान्वेपण कहलाता है। मनुष्य देखता है, इस दिखाई देनेवाले मनुष्यमें क्या तत्व है ? इस दिखाई देनेवाले अथवा दृश्यमान विश्वकी जड़में कौन-सा तत्व है ? इन दोनोंका क्या संबंध है ? यह संबंध किस प्रकारका रहे तो