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वचन-साहित्यका सार-सर्वस्व
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गॉड ।" हम भी कहते हैं, कला और साहित्य नरको नारायण बनानेका साधन है। अर्थात् पाषाणसे मानव तक विकसित चैतन्यको मानवसे ईश्वर होनेकी प्रेरणा देना साहित्यका कार्य है । कला और साहित्य नरको नारायण बनानेका शास्त्र है नरको वानर बनानेका नहीं । वचनकारोंने अपने साहित्य द्वारा नरको नारायण बननेकी प्रेरणा दी है । मैनको गॉड होने की प्रेरणा दी है । सदैव मानवको दानव बननेसे रोक कर महान् बनने की प्रेरणा देना, नरका वानरीकरण रोककर नारायण बननेकी प्रेरणा देना, मैंनको डॉग न बनने देते हुए गॉड बननेकी प्रेरणा देना, समग्र मानवीय समाजको दिव्यीकरणके लिए स्फूर्ति देना, आवश्यक पथ-प्रदर्शन करना साहित्यका उद्देश्य है । वचन-साहित्यने यह कार्य किया है। यही वचन-साहित्यका सार-सर्वस्व है।