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वचन-साहित्य-परिचय साथ मिलना चाहिए ! भक्ति बातोंकी मालिका नहीं है रे ! वह तो तन, मन, धन, गल जाने तक साध्य नहीं होती । ज्ञान और क्रियाका समन्वय होना चाहिए। दोनोंके समन्वयसे सब बातें सुसूत्र चलने लगती हैं। पंछी क्या कभी एक ही पंखसे गगन-विहार कर सकता है ? वह तो दोनों पंखसे उड़ता है। अंतरंगमें सत्य-भक्ति, बहिरंगमें सत्कार्य, यही शरण मार्ग है । यही लिंगैक्यका साधन है । सत्यका सतत स्मरण भक्ति है । उसको जानना ज्ञान है । उसका आचरण करना कर्म है । उसका ध्यान अथवा चितन ध्यान है। इन सादे-सरल शब्दोंमें वचनकारोंने अपने मार्गका गंतव्य स्थान तथा मार्ग, साध्य और साधन इन दोनोंका विवेचन किया है। मानो आध्यात्मिक जीवनका रहस्य खोलकर सामने रखा है।
वचन-साहित्यमें साक्षात्कारको जीवनका साध्य' माना है । उसीको शाश्वत सुख कहा है। अमृतानुभव कहा है। सर्पिणको उसका मार्ग माना है। उसके परिणाम-स्वरूप ज्ञान, ध्यान, क्रिया, भक्तिकी समुचित समन्वयजन्य साधना चल पड़ती है। वचन-साहित्य में इस प्रकारकी साधनाके लिए आवश्यक आचार, विचार, धर्म, नीति, तत्वज्ञान, विधि, निषेध आदिका ऐसी लोक-भाषामें निरुपण किया है जिसे सर्वसामान्य लोग समझ सकें। वचनकारोंने साहित्यके द्वारा विस्तृत पैमानेपर सामूहिक प्राध्यात्मिक साधनाका प्रयोग किया है। आजकल की भाषामें कहना हो तो वचन-साहित्य सर्वांगपूर्ण लोक-शिक्षाका सुन्दरतम साधन है। इस साधनसे सामान्य जनता इंद्रियजन्य सुखके पीछे न पड़कर शाश्वत सुखका विचार करने लगेगी। उनमें बाह्य भौतिक सुखके प्रति जो प्राशा-आकांक्षा है वह सीमित होगी। शाश्वत सुखकी जिज्ञासा जागेगी । अभ्युदयसे निःश्रेयसकी भोर मुड़ने की भावना पैदा होगी। मुक्तिसे मुक्तिकी ओर देखनेकी इच्छा होगी। इससे समाज में स्थिरता आयेगी । भौतिक सुखके लिए जो प्रतियोगिता चल पड़ी है उस स्थान पर आंतरिक समाधान प्राप्त करनेका प्रयास प्रारम्भ होगा। वचनकारोंने मुक्ति-सुख, अथवा अंतिम-सिद्धिप्राप्त मुक्त पुरुपका वर्णन करने में तो पराकाप्टाका साहित्यिक सोप्टव दिखाया है। मुक्त पुरपका वर्णन मानों सजीव साकार परमात्माका ही वर्णन है । जिसे देखकर सामान्य मनुप्यके मनमें भी ऐसा ही मुक्त मानव होनेकी आकांक्षा जागे, यही वचन-साहित्यका उद्देश्य है । किती ग्रीक तत्ववेत्ताने जीवनको उत्कांतिका वर्णन करते समय लिखा है, "स्टोन विकास ए प्लांट, प्लांट ए बीस्ट, बीस्ट ए मैंन, मैन ए स्पिरिट, स्पिरिट ए
१. अगले अध्याय इसका विस्तात विवेचन है।