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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ सत्त्वनिश्चयमात्रेणैव क्षणक्षयाधिगते बाधकप्रमाणवैयर्थ्यात्। ये तु विपक्षाद् व्यावृत्तत्वेन क्षणिकत्वव्याप्ति सत्त्वस्य सर्वत्रावगम्य तत्रैव सत्त्वात् क्षणिकत्वमनुमापयन्ति तेषां व्याप्तिग्राहकादेव प्रमाणात् क्षणक्षयस्य सर्वत्र निश्चितत्वादनुमानोत्थानमेव न स्यात, त्रैलोक्यस्य च सर्वस्य प्रत्यक्षत्वात धर्मसिद्धिश्च तेषां दोषः, असिद्धश्च हेतुः प्राप्नोति, पक्षीकृते च सर्वस्मिन् धर्मिणि बाधकं च स्यात् । यदि विपक्षाभावः सिद्धः तदा साध्यस्यापि सिद्धत्वादनुमानोत्थानं न स्यात् अन्यश्च धर्मी न सिद्धः इति कथं वा कस्य प्रवृत्तिरिति – यत् किञ्चिदेतत् । तत् स्थितमेतत् सत्त्वविशिष्टस्य कृतकत्वस्य क्षणिकत्वेन सह तादात्म्यं प्रमाणनिश्चितमिति -- कथं नान्वयव्यतिरेकनिश्चयः ?
यद्वा सत्त्वविशेषविकलस्याऽपि कृतकत्वादेः क्षणपरिणामे साध्ये नानैकान्तिकत्वम् । यतस्तस्य प्रथमे क्षणे य एव स्वभावो द्वितीयेऽपि क्षणे स एव चेत् तदा प्रथमक्षणवदभूत्वा भवनमेव प्रसक्तमिति क्षणिकत्वम् । 10 अथ प्रथमक्षणे जन्मैव तस्य न स्थितिः, द्वितीये स्थितिरेव न जन्म, एवमपि क्षणिकत्वप्रसक्तिर्जन्म-जन्मिनोः
के साथ व्याप्ति ग्रहण कर ली हे उस को घटादि में सत्त्वनिश्चय होने पर त्वरित ही (स्थैर्य प्रत्यक्ष के पहले ही) क्षणिकत्व का निश्चय हो गया, फिर कितने भी बाधकों का उदय हो सब व्यर्थ है।
कुछ विद्वान ऐसा कहते हैं कि सर्व भावों में क्षणिकत्व का निश्चय होने के पहले सत्त्व की विपक्ष (अक्षणिक) से व्यावृत्ति का निश्चय करना जरूरी है, बाद में जहाँ भी सत्त्वनिश्चय होगा वहाँ सर्वत्र (धर्मीओं 15 में) क्षणिकत्व का अनुमान शक्य बनेगा। - इन के मत में तो व्याप्तिग्राहक प्रमाण जो कि प्रत्यक्ष के
अलावा और कोई है नहीं, सर्व भावों में सत्त्व में क्षणिकत्व की व्याप्ति का प्रत्यक्ष से ही ग्रहण हो जायेगा। फलतः क्षणिकत्व धर्म की सन्मात्र में प्रत्यक्ष से ही सिद्धि हो जायेगी - यह बडा दोष होगा। तथा, सर्वधर्मी को पक्ष करने पर सत्त्व हेतु में असिद्धि दोष होगा, क्योंकि प्रत्यक्ष से सभी धर्मीयों में इष्ट साध्य क्षणिकत्व
जब प्रसिद्ध हो गया, फिर सत्त्व वहाँ हो न हो - क्या फर्क पडता है। तथा सर्व धर्मीयों को पक्ष करने 20 पर, बाधक भी उपस्थित होगा, क्योंकि भावत्वरूपावच्छेदकावच्छेदेन क्षणिकत्व सिद्ध करना है तब सामानाधिकरण्येन स्थैर्य का प्रत्यक्ष जरूर बाध करेगा।
यह तो कह चुके हैं कि यदि विपक्ष में साध्य का अभाव सिद्ध है तब तो पक्षभूत धर्मी मात्र में साध्य सिद्ध हो जाने से अनुमान का उत्थान होगा नहीं। शेष कोई धर्मी बचा नहीं तो कैसे किस अनुमान
की कहाँ प्रवृत्ति होगी ? सारांश, उन कुछ विद्वानों का मत मूल्यविहीन है। स्थित पक्ष यह हुआ कि सत्त्वविशिष्ट 25 कृतकत्व का क्षणिकत्व के साथ तादात्म्य प्रमाणसिद्ध है। अब बताईये कि अन्वय-व्यतिरेक का निश्चय क्यों नहीं हो सकता ?
[क्षणिकत्व की सिद्धि में कृतकत्व हेतु निर्दोष ] अथवा, सत्त्वविशिष्ट कृतकत्व के बदले
1. सत्त्वविशिष्ट कतकत्व के बदले क्षणिकत्व साध्य के प्रति अकेले कतकत्व को हेतु करे तो भी अनैकान्तिकत्व दोष असंभव है। देखिये - पहले क्षण में भाव का जो स्वभाव है वह यदि दूसरे क्षण 30 में भी रहेगा तो प्रथमक्षण के पूर्वक्षण में जैसे 'न रह कर प्रथम क्षण में सत्ता को धारण करने' का ऐसा
स्वभाव होने से दूसरे क्षण में भी ऐसा स्वभाव तभी होगा जब वह प्रथमक्षण में न रह कर दूसरे क्षण में सत्ताधारण करता। (इसी को कहते हैं ‘अभूत्वा भवन') इस तरह तो स्वतः क्षणिकत्व प्रसक्त हुआ।
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