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खण्ड-३, गाथा-५
२५ कथं न क्षणिक एव क्रमाऽक्रमयोर्नियमः ?
अतो यत्र सत्त्वं तत्र क्रमाक्रमावप्रतीतावपि क्षणिकत्वप्रतीतिरेव। य एव क्षणिके क्रमाक्रमयोर्नियमो नित्येप्ययमेव(?प्येवमेव) न(?तद्) योगः। ततो घटादौ यदेतन्नित्यत्वं प्रतीतिविषयत्वेनाध्यवसितं तत् सत्त्वविरुद्धमिति क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाविरोधो नित्यस्य सिद्ध उच्यते। यथा च दृष्टेषु घटादिषु क्षणिकत्वव्याप्तं सत्त्वं तथाऽदृष्टेष्वप्यविशेषादिति सर्वोपसंहारेण व्याप्तिमवगत्य यथा यथा तेषु सत्त्वं निश्चीयते तथा तथा 5 क्षणिकत्वानुमानम् । यत्र च सत्त्वाऽनिश्चयः तत्र सत्त्वाशङ्कया शशविषाणादिष्विव न क्षणिकत्वप्रतीतिरन्यत्र प्रसङ्गसाधनात्।
न च तत्राप्यनुमानवैयर्थ्यं बाधकप्रमाणादेवाक्षणिकत्वस्य निश्चितत्वात् इति वाच्यम्, प्राग् गृहीतव्याप्तिकस्य हालाँकि वह 'यह वही है' इस प्रतीति से अक्षणिक भासता है, किन्तु एक कार्य करते समय उस में जो सामर्थ्य है वह उस क्षण में ही हो सकता है, पूर्व या पश्चात् क्षणों में नहीं,क्योंकि पूर्वोत्तर क्षणो में उस 10 का कोई कार्य उपलब्ध नहीं होता। सामर्थ्य भी उस पदार्थ का अभिन्न स्वरूप ही है। उत्तरकालीन कार्योत्पत्ति में उत्तरकालीन सामर्थ्य ही कार्यकारी बनेगा, न पूर्वकालीन। तथा वह सामर्थ्य भी उत्तरकालीन पदार्थ का अभिन्न स्वरूप ही है। अतः फलितार्थ यही निकलेगा कि पूर्वोत्तरकालीन सामर्थ्यभेद होने से पदार्थ भी बदल जाता है - तो अब ऐसा कहने में क्या दोष है कि क्रमाक्रम का नियम क्षणिक वस्तु के साथ ही संगत होता है, अक्षणिक के साथ नहीं।
__15 [नित्य वस्तु के साथ क्रमाक्रम की असगंति ] इस से यह फलित होता है कि जहाँ सत्त्व होगा वहाँ क्रमाक्रमप्रतीति हो या न हो, क्षणिकत्व प्रतीति जरूर होगी। पदार्थ क्षणिक होने पर जैसे क्रमाक्रम का नियम लगता है वैसे पदार्थ नित्य होने पर भी उस को क्रमाक्रमपरीक्षा तो देना ही होगा। तब पता चलेगा कि पदार्थ में जो ‘यह स्थिर है' ऐसी प्रतीति होती है उस का विषय नित्यत्व कल्पित है अत एव सत्त्व से विरुद्ध है क्योंकि नित्य वस्तु में क्रम-योगपद्य 20 से अर्थक्रिया का मेल नहीं बैठता यह सिद्ध किया जा सकता है।
शंका :- अदृष्ट वायु आदि भावों में क्षणिकत्वानुमान कैसे करेंगे ?
उत्तर :- जैसे दृष्ट घटादि भावों में निश्चित है कि सत्त्व क्षणिकत्व से व्याप्त है वैसे अदृष्ट में दृष्टतुल्यता होने से, सर्व भावों में व्यापकरूप से व्याप्ति का आकलन हो जाने पर, जिन जिन भावों में सत्त्व सुनिश्चित होता जायेगा, उन उन भावों में (यानी अदृष्ट भावों में भी) क्षणिकत्व का अनुमान आसानी से होता 25 चलेगा। शशविषाणादि की तरह जिन में सत्त्व का निश्चय नहीं होगा, वहाँ सत्त्व शंकाग्रस्त रहने से क्षणिकत्व प्रतीति प्रसङ्ग साधन के अलावा नहीं हो सकेगी। प्रसङ्गसाधन में, 'यदि शशविषाणादिवत् आशंकित भाव में सत्त्व होगा तो वह क्षणिक होगा' इस तरह क्षणिकत्व की शशविषाणादि में आहार्य (कृत्रिम) प्रतीति का निषेध नहीं है। [क्षणिकत्वनिश्चय के बाद प्रत्यक्षबाध अकिंचित्कर ]
30 ऐसा नहीं कहना कि – ‘घटादि भावों में क्षणिकत्व का अनुमान व्यर्थ है, क्योंकि वहाँ स्थैर्यग्राही प्रत्यक्षप्रमाण से अक्षणिकत्व पूर्वनिश्चित ही है।' – निषेध का हेतु यह है कि जिसने प्रथमतः ही क्षणिकत्व
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