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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १
'पूर्वाह्ण' आदिप्रत्ययविषयो महाभूतविशेषः कालोस्त्येव तद्भेदात् क्रमादिप्रतीतिर्युक्तैव ।
नापि नित्यस्य प्रकारान्तरेण कर्तृत्वसङ्गतिः । यतः एकदेशकार्यकारणानेक - ( ? ) करणे अन्यदा प्रकारान्तरेण करणेऽङ्गीक्रियमाणे वस्तुनः स्वभावभेदात् भेदप्रसक्तिरिति नैकत्वम्, पुनः पुनः कार्यकरणे च क्रम एव न प्रकारान्तरसम्भवः । न च प्रकारान्तरेण 'नैकदा कार्यं करोति पुनः पुनश्च करोति' 5 इत्येवं करणमभ्युपगन्तव्यम् भावस्याऽवस्तुत्वप्रसक्तेः सर्वदाऽकर्तृत्वात् । अथ 'एकदा कार्यं करोति पुनः पुनश्च न करोति' इति प्रकारान्तरेण करणमभिमतं तथापि (न?) यदा न करोति ( न ? ) तदाऽवस्तुत्वमेव प्रसक्तम् । तस्मात् 'घटादिः पदार्थोऽक्रियाकारी क्रमाक्रमाभ्यां प्रत्यक्षसिद्ध: ( यद्यपि ) स एवायम्' इति ज्ञानादक्षणिकश्च प्रतीयत एव' ( किन्तु ) तस्यैककार्यकरणं प्रति यत् सामर्थ्यं तत् तदैव न पूर्वं न पश्चात् तत्कार्याभावात्, सामर्थ्यं तु ततोऽव्यतिरिक्तमेव, उत्तरकार्योत्पत्तावप्येवं द्रष्टव्यमिति सामर्थ्यभेदेन पदार्थभेदात् 10 भाव घटाया जा सके। फिर उस काल में भी पूर्वापरभाव व्यवस्था करने के लिये अन्य एक काल की कल्पना, इस तरह अप्रामाणिक कल्पना का अन्त नहीं आयेगा ।
यदि अन्यकाल सांनिध्य रूप सहायक के बदले मुख्य काल में स्वरूपतः पूर्वापरभाव मान लिया जाय तो उस के बदले जिन भावात्मक कार्यों में पूर्वापरभाव सिद्ध करना हैं उन में भी मुख्य काल सहाय के विना स्वरूपतः ही पूर्वापरभाव मान लेने से अपने आप क्रमव्यवस्था हो जायेगी । अतः स्वतन्त्र मुख्य काल 15 मानने के बदले हमारे मत में तो यही बात है कि लोक समाज में जो पूर्वाह्णादि प्रतीति होती है उस
का विषयभूत कोई पूर्वाह्ण- अपराह्णादि महाभूत है ( जो कि प्रसिद्ध ही है) जिस की 'काल' संज्ञा की गयी है और ऐसे महाभूत तो अनेक हैं अतः उन के भेद से पूर्व - अपर आदि भिन्न भिन्न भावों में क्रम की प्रतीति संगत ही है।
[ नित्यवादीपक्ष में अन्यप्रकार के कर्तृत्व की असंगति ]
क्रमाक्रम के विना नित्यपदार्थ में अन्य किसी प्रकार से कर्तृत्व की संगति सम्भव नहीं है। कारण यह है कि नित्य पदार्थ एक देश में जिस प्रकार से कार्य करेगा अन्य देश में उसी प्रकार से कार्य करने का मानेंगे तो देशऐक्य प्रसक्त होगा, अन्य प्रकार से कार्य करेगा तो स्वभावभेद से वस्तुभेद की आपत्ति होगी । इसी तरह काल भेद से स्वभावभेदापत्ति भी समझ लेना । इस से फलित हुआ भिन्न काल में वस्तु एक नहीं है। यदि कहा जाय कि नित्य भाव बार बार कार्य करता रहेगा तो यहाँ क्रम से ही 25 कार्य हुआ, तीसरा तो कोई प्रकार नहीं आया। यानी क्रम से कार्य करने पर भिन्नस्वभावता से वस्तुभेद प्रसक्त है । यदि ऐसा कहें कि 'क्रमअक्रम उपरांत तीसरा प्रकार यह है कि एक बार कार्य करता नहीं किन्तु करता है जरूर बार बार ।' तो यह असंगत है, क्योंकि जो एक बार कार्य नहीं करता वह कभी भी कार्य कर नहीं सकता, यानी सर्वदा अकर्ता बने रहने से भाव में अवस्तुत्व प्रसक्त होगा । यदि कहें कि 'तीसरा प्रकार ऐसा है बार बार नहीं करता, एक बार जरुर करता है ।' तो भी जब करता
30 है तब तो वस्तु है किन्तु जब नहीं करता उस काल में असत्त्व प्रसक्त रहेगा । [ क्षणिक भाव में क्रमाक्रम का नियम सुसंगत
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फलतः यह प्रत्यक्षसिद्ध हुआ कि घटादि पदार्थ क्रम - अक्रम (अन्यतर) प्रकार से ही अर्थक्रियाकारी है ।
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