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पांचवां बोल-३३
होने से दूसरी आत्माओ को किस प्रकार लाभ होता है, यह बात दृष्टान्त द्वारा समझिए ।
किसी धनाढय सेठ के पुत्र को कोई भयकर रोग हुआ। पुत्र का रोग दूर करने के लिए सेठ ने अनेक वैद्य बुलाए। वैद्यो ने कहा- 'ऐसा रोग मिटाने के लिए करोड दवाओ की आवश्यकता है। इन करोडो दवाओ का मूल्य भी करोडों रुपया होगा।' सेठ ने प्रश्न किया-'यह तो ठीक है, परतु थोडी-थोडी होने पर करोड़ दवाओ का वजन कितना अधिक हो जायेगा? वेद्यो ने कहा - 'वजन तो अवश्य अधिक हो जायेगा, मगर उस दवा से औरो को भी लाभ पहुँचेगा । आपके पुत्र का रोग नष्ट होने के साथ इस योग के अन्य रोगियो को भी आरोग्यता मिलेगी । हमारे ख्याल से तो आपके पुत्र को यह रोग, अन्य रोगियो का रोग मिटाने के लिए ही आया है।'
वैद्यो का यह कथन सेठ को उचित प्रतीत हुआ । उसने तिजोरी से रुपया निकाल कर दव इयां सग्रह करवाई। उन सब दवाओ से वैद्यो ने एक विशेष दवा तयार की, जिसके सेवन से सेठ का लडका नीरोग हो गया। तदनन्तर सेठ ने घोषषा करवा दी अमुक रोग की दवा हमारे पास मौजूद है। जो इस रोग से ग्रस्त हो, हमसे दवा ले जाय । इस घोषणा से अनेक लोग आकर सेठ से दवा लेने लगे और दवा का सेवन करके रोगमुक्त होने लगे ।
अब आप विचार कीजिए कि सेठ के लडके को रोग हुआ सो यह अच्छा हुआ या बुरा ? वास्तव में इस सम्बन्ध में एकान्त रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । मगर उस दवा के सेवन से जो रोगमुक्त हुए थे, उनका कहना था कि