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६२-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
फाड डाली । रानी ने अपनी साडी क्या फाडी, मानो अपने कष्ट ही फाड कर फैक दिये । उसकी साड़ी के तार क्या टूटे, मानो उसका तीव्र अन्तरायकर्म ही टूट गया !
गनी को इस प्रकार साडी फाडते देखकर राजा को दुख हुआ। उसने सोचा - मेरी पत्नी के पास एक ही साडी थी और वह भी आधी दे देनी पडी । लेकिन दूसरे ही क्षण यह विचार कर प्रसन्नता भी हुई कि ऐसा करने से हमारे सत्य की रक्षा हुई है । अन्त में राजा-रानी का कष्ट दूर हुआ और उनके सत्य की भी रक्षा हुई ।
कहने का आशय यह है कि सकट सिर पर आने पर भी अपने आपको पतित न होने देना चाहिए। सत्यधर्म की ऐसी दृढ़ता जिसमें होगी, वही सच्ची गर्दी कर सकेगा ।