________________
२६०-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
और अर्थ के विपय में प्रतिपृच्छना करके उसे अच्छी तरह समझ लेना आवश्यक है । इसके सिवाय सूत्र और अर्थ हीनाक्षर आदि दोपो से रहित होने चाहिए । वास्तविक सूत्र हीनाक्षर या निरर्थक शब्दों वाले नहीं होते। हीनाक्षर या निरर्थक शब्द होना सूत्र दोप है। सूत्र का प्रत्येक अक्षर सार्थक और शुद्ध होना चाहिए ।
कहने का प्राशय यह है कि जिस प्रकार वारम्बार शरीर की सार-सँभाल की जाती है उसी प्रकार मूत्रवाचना के विपय मे भी बार-बार पूछताछ करना चाहिए और जिस सत्र की वाचना ली गई हो उसकी भी संभाल रखनी , 'चाहिए। सूत्र की भलीभाति सँभाल रखने से और सूत्र के
सम्बन्ध में बार-बार पृच्छना करने से सूत्र और अर्थ की विशुद्धि होती है और साथ ही साथ काक्षामोहनीय कर्म का नाश भी होता है।
यहा काक्षा का अर्थ है - सदेह । 'यह तत्व ऐसा है या नही' अथवा 'यह सत्य है या असत्य' इस प्रकार का सदेह उत्पन्न होना मोह का प्रताप है। अनभिग्रहीत मिथ्यात्व ऐसा होता है कि वह जीव को मालूम नहीं होने देता। मगर ज्ञानीजन कहते हैं कि यह मोह का ही प्रताप है। वार- बार पूछताछ करने से काक्षामोहनीय कर्म नष्ट होता है और यह तत्त्व ऐसा ही है' या 'यह बात ऐसी ही हैं। इस प्रकार की दृढता उत्पन्न होती है ।
किसी बात का निश्चय न होने से अत्यन्त हानि होती है और निश्चय हो जाने से अतीव लाभ होता है । मान लीजिए, कुछ मनुष्य जगल में जा रहे है। उन्होने वहा सीप