Book Title: Samyaktva Parakram 02
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 301
________________ बीसवां बोल - २६१ का टुकडा देखा । एक ने समझा - यह चादी है । तब दूसरे ने कहा - जगल मे चादी कहा से आई ? वह सीप होना चाहिए । इस प्रकार दोनो के अक्षरो मे और अथ मे भेद पड गया । बात सदिग्ध ही बनी रही । वह वास्तव मे चादी है या सीप; ऐसा निर्णय नही हुआ । निर्णय न होने से वे दोनो सदेह मे रहे । अगर दूसरा कोई उनसे पूछेगा कि वहाँ चादी है या सीप ? तो वे निश्चयात्मक रूप से कुछ भी नही कह सकेगे । उन्होने निश्चय कर लिया होता तो वे स्वय सदेह मे न रहते और दूसरो को भी सदेह मे न डालते ! किसी भी वस्तु में सदेह रखने और निश्चय न कर लेने से विचार मे ऐसा अन्तर पड जाता है । सभी विद्याओ से यह वात लागू पडती है । पढे और गुने मे कितना तर होता है, यह तो आप जानते ही हैं । कहावत प्रसिद्ध है'पढा है पर गुना नही ।' सूत्र की वाचना पढने और गुनने के विषय मे भी ऐसा ही अन्तर पड जाता है । एक आदमी ने सूत्र तो पढा है किन्तु सूत्र के सम्बन्ध मे उत्पन्न हुए सशय का निवारण नही किया है और दूसरे मनुष्य ने सूत्रवाचना लेकर अपना सशय निवारण कर लिया है । एक मनुष्य सूत्र वाचकर सदिग्ध रहता है और दूसरा सूत्र को वाँचकर सूत्र और अर्थ के विषय मे पूछताछ करके सदेहरहित हो जाता है । इस प्रकार दोनो के बीच बहुत अन्तर है । दूसरे लोग अपने सिद्धान्त की बात कदाचित चुपके से बतलाते हो पर जैनशास्त्र कहता है कि सूत्रसिद्धान्त की

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