Book Title: Samyaktva Parakram 02
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 302
________________ २६२-सम्यक्त्वपराक्रम (२) घात चपके चक बताना उचित नहीं । अतएव आपको जो कुछ भी बनाया जाय उपके विषय में बार-बार पूछताछ करो और जो काई गका ही उसका समाधान प्राप्त करा। बहुत बार अनुचिन गकाए भी उटनी है, लेकिन गका उत्पन्न हो जाने पर भी गंका मे ही पटा रहना ठीक नहीं है । गाए निवारण करने का प्रयत्न करना चाहिए अतएव सूत्र की जो बाचना ली हो उसका सम्बन्ध में बार-बार पूछताछ करनी चाहिए। कोई भी बात किमी विगेपन में ही पूछी जाती है । उलिए अपने में अधिक जानकार के कथन पर विश्वास रखकर उमम गका का गामाधान प्राप्त करना चाहिए । विगपन के कथन पर विश्वाम ग्वा ही जाता है। शरीर के विषय में पाप किा डाक्टर में ही प्रश्न करेंगे। अगर दाक्टर गरीर को रोगी कहेगा तो उसके कथन पर याप विश्वास करेंगे और उसकी गलाह मानेंगे। हनी प्रकार अपने में अधिक ज्ञानी के कथन पर विश्व म किया हो जाता है। वरतु के परीक्षक सब लोग नहीं होत, थोड़े ही होत हैं । परन्तु जो लोग वस्तु के परीक्षक नही हैं वे परीक्षक के कथन पर विश्वास रखकर ही व.तु ग्रहण करने है । रत्न के परीक्षक मत्र नहीं होते मगर रन का यग्रह कौन नहीं करना चाहता ? सभी लोग रत्नों का संग्रह करना चाहते है, परन्तु ग्वय परीक्षक न होने के कारण रत्नपरीक्षक के कथन पर ही उन्हें विश्वास रखना पड़ता है। जव सभी कार्यों में अपने मे विगप जानकार के कायन पर विश्वाम किया जाता है तब बर्म की बात पर भी विश्वास क्यो न किया जाये ? धर्म की बात में भी अपने

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