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१३२-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
है। किन्तु आजकल के अधिकाश लोगो ने वन्दना को भी स्वार्थसाधन का एक उपाय बना लिया है और इसलिए चाहे ‘जिसे वन्दना कर ली जाती है । प्राचीनकाल में यह बात नही थी। उस समय मस्तक भले ही काट लिया जाये पर गुणहीनो के सामने मस्तक नहीं झुकाया जाता था । धर्म के विषय मे भी यह नियम पालन किया जाता था और व्यवहार में भी इस नियम का पालन होता था। कहा जाता है कि मुगन-सम्राट अकबर ने महाराणा प्रताप को कहला भेजा था कि अगर राणा मेरे आगे नतमस्तक हो तो मैं उन्हें मेवाड के राज्य के अतिरिक्त और भी राज्य दूगा । 'परन्तु महाराणा ने प्रत्युत्तर दिया-'मैं उन्हे धार्मिक समझ कर नमस्कार करूँ, यह वात जुदो है, किन्तु लोभ के वश होकर तो कदापि नमस्कार नहीं करने का । ऐसा करने से मेरी माता को ही कलक लगता है।' राणा प्रताप मे ऐसी 'दृढता थी। इसी दृढता के कारण उन्हे जगल मे इधर-उधर भटकना पड़ा और सकटो मे रहना पडा । राणा ने अपना कुलधर्म निभाने के लिए सभी कष्ट सहना स्वीकार किया किन्तु बादशाह के आगे नतमस्तक होना स्वीकार नही किया।
धर्ममार्ग मे भी इसी प्रकार की दृढता धारण की जाये और सयम आदि गुणो के घारको को विधिपूर्वक वदना की जाये तो भगवान् द्वारा प्ररूपित वदना का फल अवश्य प्राप्त होता है । मगर दृढता धारण किये विना फल की प्राप्ति नही होती । कामदेव और अरणक को पिशाच ने कैसे-कैसे कष्ट दिये थे, फिर भी उन्होने पिशाच के सामने सिर नही झुकाया । यह धर्मदृढता का ही परिणाम है। धर्म मे दृढता रखने वाले के चरणो मे देवता आकर नमन करते हैं।