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१५६-सम्य॑वत्वपराक्रम (२) यह देख कि हम अपने व्रतो से कहां-कहां गिरे हैं । जहाँजहाँ आप गिरे हो, उस 'जगह से अपने आपको हटाकर , ठिकाने पर आइए । शास्त्र का कथन है कि जो 'पुरुप जिस । योग मे प्रवृत्त हो रहा हो वह उसो योग में अपनी आत्मा . को सँभाले रहे। जिसकी इच्छा सयमयोग मे वतन की होगी वह अपनी आत्मा को बरावर संभाल कर रखेगा । ___F शास्त्र की यह वात ध्यान में रखते हए अपनी आत्मा को संयमयोग में प्रवत्त करने का प्रयत्न करना चाहिए और आत्मा व्रत मे से जहाँ कही पतित हआ हो उस स्थान से । उसे हटाकर यथास्थान लाना चाहिए । जो, चलता है, कही न कही उसका पैर फिमल ही जाता है। एक बार पर फिसलने से वह सावधान वन जाता है, मगर उसको सावघानी, वही होती है जहा उसका पर फिपलता है । । । । । __., प्रतिक्रमण करना. एका प्रकार से फिसली. हई बात्मा । को सावधान करना ही है । प्रतिक्रमण करना आत्मारूपी। घड़ी को चावी देना है। अगर कोई घडी, ऐसी हो कि जव जव तक उसमे चाबी चुमाई जाती रहे तब तक वह चलती. रहे मीर चावी घुमाना बन्द करते ही वह वन्द भी हो : जाये, तो यही कहा जायेगा कि वह बडी विगडी है । एक : वार चावी देने, पर नियत समय तक चलने वाली घड़ी ही अच्छी घड़ी कहलाती है। इसी प्रकार एक वार प्रतिक्रमण- । रूपी चावी देने के पश्चात मात्मा को नियत समय तक तो सावधान रहना ही चाहिए। अगर प्रतिक्रमण करते समय आत्मा शुभयोग मे रहे और प्रतिक्रमण बन्द करते ही शुभयोग से गिर जाये तो बिगड़ी घडी के समान ही उसका व्यवहार कहना चाहिए ।