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सत्तरहवां बोल - २२५
का ससर्ग विशेष रूप से रहता है और इस कारण मनुष्यमनुष्य के बीच कलुषता होना अधिक सभव है । अतः मनुष्यो के प्रति निर्वैरभाव प्रकट करने के लिए, सर्वप्रथम अपने घर के लोगो के साथ अगर कलुषता हुई हो या उनके द्वारा कलुषता हुई हो तो उसे हृदय से निकाल कर क्षमा धारण करना चाहिए और इस प्रकार हृदय शुद्ध करके धीरे-धीरे विश्वमंत्री का अभ्यास करना चाहिए । इस तरह विश्व के जीवमात्र के प्रति क्षमा का आदान-प्रदान करने से चित्त मे प्रसन्नता होती है और चित्त की प्रसन्नता से भाव की विशुद्धि होती है । अगर दूसरे की ओर से तुम्हारे हृदय को चोट पहुँची हो तो उसे उदारतापूर्वक क्षमा देना चाहिए और यदि तुमने किसी का हृदय दुःखी किया हो तो तुम्हे नम्रतापूर्वक क्षमा माँगना चाहिए । यही सच्ची क्षमापणा है ।
तुम प्राय हमेशा ही क्षमापणा करते हो परन्तु सब से पहले यह देखो कि तुम्हारी क्षमापणा सच्ची है-हृदयपूर्वक है अथवा केवल प्रथा का पालन करने के लिए ही है ? देखना, कही ऐसा तो नही होता कि प्रतिक्रमण करके उपाश्रय मे तो भाई के साथ क्षमापणा का व्यवहार करो मगर उपाश्रय से बाहर निकलने के बाद भाई पर दावा किया हुआ मुकद्दमा चालू रखते होओ ? इस तरह बाहर से क्षमाभाव बतलाओ और भीतर-भीतर वैरभाव रखो तो वह सच्ची क्षमापणा नही है | सच्चे भाव से क्षमापणा की जाये तो आपसी झगडे आगे चालू नही रह सकते | सच्ची क्षमापणा करने वाला तो यही कहेगा कि अब तुम्हारे और मेरे बीच केस नही चल सकता। तुम्हारी इच्छा हो तो हमारा