Book Title: Samyaktva Parakram 02
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 291
________________ उन्नीसवां बोल-२५१ संस्कार अंकित कर सकते है । इसी प्रकार गुरु अगर सुसस्कारी हो और वाचना देने के कार्य को अपना ही कार्य माने और यह समझे कि शिष्य मेरे कर्मों की निजरा करने का साधन है, अत वह मेरा उलटा उपकारी है, तो गुरु द्वारा दी हुई वाचना शिष्य के हृदय में स्थान बनाये बिना नही रह सकती । ऐसा समझकर शिष्य को वाचना देने वाला महात्मा धन्यवाद का पात्र है । भगवान ने कहा है- वाचता देने से एक तो कर्मों की निर्जरा होती है और साय हो माथ मूत्र को अन सातना . और. अनुसृजना होती है अर्थात् सूत्र को परम्परा जारी रहती है मूत्र का ज्ञाता अगर दूसरे को मूत्र का ज्ञान न दे तो मूत्रज्ञान विच्छिन्न हो जाये । इसके विरुद्ध एक दूसरे को सूत्र का ज्ञान देने से मूत्र की परम्परा चालू रहती है । जो पुरुष सूत्र का ज्ञाता होने पर भी दूसरे को सूत्र का ज्ञान नही देता वह मूत्र की आसातना करता है, अतएव दूसरे को सूत्रवाचना देते रहने ने सूत्र की अनासातना भी होती है और वाचना देने व ले के द्वारा सूत्र की सृजना भी - होती है । किसान वीज बोने के बदले अगर बीज को भी खा जाये तो अन्न की परम्परा आगे तक कैमे चल सकती है ? इसी प्रकार सूत्र का जानकार अगर दूसरे को सूत्रज्ञान न दे तो सूत्रज्ञान की परम्परा किस प्रकार चल सकनो है? जैसे किसान अन्न मे से बीज अलग रख छोडता है और शेष अन्न खाता है, उनी प्रकार स्वय सूत्र का लाभ लेकर दूसरे का भी वाचना देनी चाहिए, जिससे कि सूत्र की परम्परा बरावर चालू बनी रहे । इसके अतिरिक्त भगवान् कहते है कि सूत्रवाचना

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