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बीसवाँ बोल
प्रतिपृच्छना
आत्मा के ऊपर अनादिकाल से जो आवरण चढे हैं, उन्हें दूर करने का एक उपाय म्वाध्याय भी है । स्वाध्याय __ के पाच भेदो मे से वाचना के विषय में कहा जा चुका है।
वाचना के पश्चात् प्रतिपृच्छना सम्बन्धी प्रश्न उपस्थित होता है । आगम का जो पठन-पाठन किया गया हो उसे उसी रूप मे न रखते हुए उसके सम्बन्ध मे विचारविनिमय करना और हृदय मे उठी हुई शका के विपय मे पूछताछ करना प्रतिपृच्छना है। प्रतिपृच्छना के विषय मे प्रश्न करके यह सूचना दी गई है कि जिस कथन मे किसी प्रकार की गडबड होती है अथवा जो अपने कथन का पूर्ण रहस्य नही जानता उसे सदैव यह भय बना रहता है कि अगर मेरे कथन के विषय मे कोई व्यक्ति कोई प्रश्न करेगा तो मैं क्या उत्तर दूगा ? इस तरह जिसके कथन मे किसी प्रकार की पोल या गडबडी होती है, उसके कथन के विषय में अगर कोई पूछताछ की जाये तो उसे भय होता है। किन्तु जैनशास्त्र में किसी प्रकार की पोल या गडवड नहीं है। यही बतलाने के लिए कहा गया है कि, जिस सूत्र की वाचना ली गई है,