Book Title: Samyaktva Parakram 02
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 273
________________ सत्तरहवां बोल-२३३ दूसरो का अपराध देखेगा तो दूसरो से क्षमा नही माग सकेगा और न उन्हे क्षमा दे ही सकेगा । इसलिए तू अपने ही अपराधो की ओर दृष्टिपात कर और उनके लिए क्षमाप्रार्थी बन । चडप्रद्योत ने उदायन का कितना अपराध किया था? किसी ने तुम्हारा भी अपराध किया होगा परन्तु वह चंडप्रद्योत जैसा शायद ही हो । फिर क्या तुम सामान्य अपराध के लिए भी क्षमा नही कर सकते ? तुम दूसरो के अपराध न देखकर अपने ही अपराध देखो और सब से क्षमायाचना करके प्राणीमात्र के प्रति मैत्रीभाव स्थापित करो । उदायन ने कहा-मैंने आपको कैद किया और आपका राजपालट छीन लिया है, इस अपराध के लिए मुझे क्षमा दीजिए।' __ इसे कहते हैं क्षमापणा | इस प्रकार की सच्ची क्षमा-' पणा ही हृदय को प्रसन्नता प्रदान करती है। उदायन के मन मे यह अभिमान आना स्वाभाविक था कि मैं मालव-नरेश को जीत कर कैद कर लाया हूं । मगर नही, उसने यह अभिमान नही किया, यही नहीं वरन् अपनी इस विजय को पश्चात्ताप का कारण वनाया । चडप्रद्योत को पहले ही मालूम हो गया था कि सवत्सरी का दिन ही इस बन्धन से मुक्त होने का स्वर्ण अवसर है । अतएव उसने उदायन के कथन के उत्तर मे कहा-' 'महाराज | इस प्रकार क्षमायाचना करने से मुझे किस प्रकार शान्ति मिल सकती है ? आखिर तो मैं भी क्षत्रिय राजा हू । इस समय मैं राजपद से भ्रष्ट होकर कैदीजीवन व्यतीत कर रहा है। इस स्थिति मे मेरे हृदय मे कैसे भाव उठते होंगे? पदभ्रप्ट राजा कैद करने वाले को किस प्रकार :

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