Book Title: Samyaktva Parakram 02
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 281
________________ अठारहवां बोल-२४१ का ध्यान रखते हैं कि स्वाध्याय करने वाले की भावना किस प्रकार पूर्ण हो । स्वाध्याय की विधि क्या है ? और किस उद्देश्य से स्वाध्याय करना चाहिए? किसान खेत मे बीज फैकता है सो केवल फैक देने के उद्देश्य से ही वह नही फेंकता है। एक दाने के अनेक दाने उत्पन्न करने के लिए वह वीज फैकता है । स्वाध्याय करने वाले को भी यह बात सदैव स्मरण मे रखनी चाहिए कि मैं स्वाध्याय करके हृदय-क्षेत्र में जिस बीज का आरोपण करता हू, वह विशेष रूप फल की प्राप्ति के लिए कर रहा हू । अतएव में जैसे-तैसे बोलते स्वाध्याय न करू वरन् स्वाध्याय के द्वारा जो बात ग्रहण की गई है, उसी के अनुसार व्यवहार करूं। इस प्रकार सक्रिय स्वाध्याय करने से ही स्वाध्याय के फल की प्राप्ति होती है । स्वाध्याय का फल ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होना है। स्वाध्याय के सम्बन्ध मे एक उदाहरण और दिया जाता है। जैसे फल की प्राप्ति के लिए ही वृक्ष की जड़ें, सीची जाती है, उसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म को नष्ट करने रूप फल प्राप्त करने के लिए ही स्वाध्याय किया जाता है। अतएव स्वाध्याय करने मे सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि मैं वृक्ष को सीच तो रहा हु, मगर कही ऐसा न हो कि मैं फल से वचित रह जाऊ । मैं दूसरो को सुनाने के लिए स्वाध्याय करू और लोग भी मेरी प्रशसा करें, मगर मैं जैसा का तैसा ही न रह जाऊ । मुझसे ऐसा न हो कि मूल को सीचने पर भी मुझे फल प्राप्त न हो । मुझे इस बात का ध्यान होना चाहिए कि मैं शास्त्र का स्वाध्याय करके जिस धर्मरूपी कल्पवृक्ष का सिंचन कर रहा हू, उसका फल

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