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अठारहवां बोल - २४५
तपस्वीजी - इसीलिए हम कहते है, भविष्य के लिए धर्मध्यान करो |
मैं भी आपसे यही कहता हू कि आपको उत्तम मनुष्य - जन्म, उत्तम जैनधर्म, उत्तम धर्मक्षेत्र आदि का सुयोग मिला है । इस अनमोल अवसर का लाभ उठाकर आत्मकल्याणी' साधो । इसी में कल्याण है । दूसरे आत्मकल्याण की साधना करे या न करें, उस पर ध्यान न देते हुए आप अपना कल्याण करने मे प्रयत्नशील रहे ।
कहने का आशय यह है कि स्वाध्याय का फल ज्ञाना-वरणीय कर्म का नाश करना है । कोई कह सकता है कि हमे शास्त्र वाचना नही आता, ऐसी स्थिति मे शास्त्र काँ स्वाध्याय किस प्रकार करें ? ऐसा कहने वाले लोगो से यहीं कहा जा सकता है कि अगर आपको शास्त्र पढना नहीं आता तो कम से कम णमोकारमन्त्र तो आप भी जानते हैं ? आप उसका जाप और आवर्त्तन वगैरह करें । णमोकारमंत्र का आवर्त्तन करना भी स्वाध्याय ही है । अन्य लोगो के कथनानुनार वेदाध्ययन या प्रकार का जाप करना स्वाध्याय है । इसी प्रकार आप यह समझें कि द्वादशाग रूप जिनवाणी का पठन-पाठन करना या णमोकारमत्र का जाप करना भी स्वाध्याय है । अगर आप शास्त्र का स्वाध्याय नही कर सकते तो णमोकार मंत्र का जाप रूप स्वाध्याय करें । इससे भी कल्याण होगा ।
शास्त्र में स्वध्याय नन्दन वन के समान बतलाया गया है । जो पुरुष स्वाध्याय द्वारा नन्दन वन सरीखा आनन्द लेता होगा वह दूसरी झभटो मे नही पडगा । मनुष्य