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उन्नीसवां बोल
वाचना
स्वाध्याय भी परमात्मा की प्रार्थना करने का एक साधन है। पिछले प्रकरण मे स्वाध्याय के पाच भेद बतलाये गये हैं। अब शास्त्रकार स्वाध्याय के प्रत्येक भेद पर विचार करते हैं । स्वाध्याय से जीव को क्या लाभ होता है, इस विषय पर समुच्चय रूप मे विचार किया जा चुका है। परन्तु इस प्रकार सामान्य रूप से कही हुई बात कभीकभी साधारण लोगो की समझ में नही आनी । इसी कारण स्वाध्याय के प्रत्येक भेद के सम्बन्ध मे विशेष रूप से विचार किया जाता है । मनुष्य कहने से सभी मनुष्यो का समावेश हो जाता है, फिर चाहे वह राजा हो, रक हो, गरीब या अमीर हो, ब्राह्मण हो या शूद्र हो । लेकिन साधारण लोग मनुष्य कहने मात्र से मनुष्य के सब भेदो को नहीं समझ सकते । उन्हे मनुष्य के भेद समझाने के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि भेद स्पष्ट करके समझाने पड़ते हैं । इसी प्रकार : स्वाध्याय के सम्बन्ध मे समुच्चय रूप से विवेचन किया गया है, मगर वह विवेचन साधारण लोग नहीं समझ सकते। इस विचार से स्वाध्याय के भेद करके प्रत्येक भेद के विषय