Book Title: Samyaktva Parakram 02
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 259
________________ सोलहवां बोल-२२१ है, चाहे वह फल इसी जन्म के पाप का हो अथवा किसी और जन्म का हो। श्री भगवतीसूत्र में इस सबन्ध में प्रश्न पूछा गया है 'से ननं भते ! सकडा कम्मं वेदयंति, परकडा वेदयंति? अर्थात् -हे भगवन् ! जीव अपने किये कर्मों से दुःख पाते है या दूसरो के किये कर्मो से दुःख पाते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहागोयमा ! सकडा कम्मं वेदयंति, नो परकड़ा । अर्थात हे गौतम ! जीव अपने कर्मों को ही भोगता है, दूसरो के किये कर्म को नहीं भोगता । यद्यपि भगवान् ने ऐसा कहा है लेकिन आजकल तो यह देखा जाता है कि अगर कोई खभे से टकराता है तो वह खभे को ही दोष देने लगता है, मगर अपनी असावधानी का खयाल नहीं करता । इसी प्रकार अज्ञानी अपने पापकर्मो की ओर नजर नहीं डालते वल्कि दूसरो को दोष देने को तैयार रहते है ! इससे विरुद्ध ज्ञानीजन अपने ही पापों को देखते हैं और उनका प्रायश्चित करते हैं । तुम भी अपने पापो को देखो और उनका प्रायश्चित करो तो तुम्हारा कल्याण होगा।

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