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बारहवां बोल-१६१ हूं या नही ? अतएव हे प्रभो ! मैं तुमसे यही प्रार्थना करता हू कि अर्जुन मित्र पर मुझे कदापि क्रोव न आये ! __. उपसर्ग,आने पर कायोत्सर्ग करने का महत्व यह है
कि सुदर्शन को अर्जुन माली पर उस समय क्रोध नही आया । _ अब यह कहा जा सकता है कि ऐसा ही है तो यावज्जीवन कायोत्सर्ग करने की क्या आवश्यकता है ? मर्यादित समय
के लिए ही कायोत्सर्ग' क्यो न किया जाये ? इस प्रश्न का - उत्तरः यह है कि सम्भव है, उपसर्ग मे ही मरण हो जाये।
यह बात दृष्टि में रखकर ही यावज्जीवन कायोत्सर्ग किया न जाता है ।
कहा जा सकता है कि फिर वह कायोत्सर्ग यावज्जीवन के लिए ही क्यो नही रखा जाता ? उपसर्ग से बचने ___ के बाद वह त्याग क्यो नही माना जाता ? इस प्रश्न का - उत्तर यह है कि मरणकाल समीप न होने पर भी कायोत्सर्ग करना उचित नही है । ऐसा कायोत्सर्ग आत्महत्या
की कोटि मे दाखिल हो जाता है । आत्महत्या का पाप ' भी न लगे और उपसर्ग से बचने के बाद कायोत्सर्ग भग करने का पाप भी न लगे, इसी उद्देश्य से उपसर्ग के समय यावज्जीवन कायोत्सर्ग करने पर भी यह छुट रखी जाती है कि अगर मैं उपसर्ग से बच जाऊ तो मेरे त्याग नही है । उपसर्ग से बचने के बाद शरीर की सभाल रखनी ही पडती है, अतएव मर्यादित त्याग किया जाता है । इस प्रकार का मर्यादित त्याग साधु अपनी रीति से करते हैं और श्रावक अपनी रीति से ।
सोते समय भी इस प्रकार का सथारा करने की पद्धति है कि अगर सोते-सोते ही मेरा मरणकाल आ जाये