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चौदहवां बोल-१८७ उस श्रावक को चोर पर करुणा आई । वह चोर के पास जाकर उससे कहने लगा 'भाई। तुम्हारे ऊपर मुझे अत्यन्त दया है । मगर मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हू ?'
श्रावक का यह कथन सुनकर चोर प्रसन्न हुआ और मन ही मन कहने लगा -बहुतसे लोग इस रास्ते से निकले पर इस सरीखा दयालु कोई नहीं था।
ऐसे दुखी मनुष्य को देखकर तुम्हे उस पर करुणा उत्पन्न होगी या नही ? ऐसी दुखद अवस्था इस आत्मा ने न जाने कितनी बार भोगी होगी। इस प्रकार आज आत्मा जो करुणा दूसरे पर प्रकट कर रहा है सो न जाने कितनी बार स्वय उस करुणा का पात्र बन चुका है। ऐसी अवस्था मे भी आज लोगो के हृदय से करुणाभाव की कमी हो रही है । करुणा की कमी का खास कारण स्वार्थभावना है। स्वार्थभावना जब हृदय मे घर कर बैठती है तब करुणामूत्ति माता मे भी भेदभाव आ जाता है और उसमे से भी करुणा निकल जाती है । माता की भी जब ऐसी स्थिति हो सकती है तो स्वार्थभावना के कारण अगर दूसरो मे भी दुखियो के प्रति करुणा न रहे तो इसमे आश्चर्य ही क्या है?
सेठ के मीठे बोल सुनकर चोर को बड़ी प्रसन्नता हुई । सेठ ने उस चोर से कहा 'मैं तुम्हारी कुछ सेवा कर सकं तो कहो ।' चोर बोला-'आपको और तो क्या कहं। हा, इस समय मैं बहुत प्यासा हू। पीने के लिए थोडा पानी दे दो ।' सेठ ने कहा -बहुत अच्छा । मैं अभी पानी लाता ह । राजा की ओर से मुझे जो दण्ड मिलना होगा सो मिलेगा; लेकिन मैं पानी लाने जाऊँ और इतने ही समय