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पन्द्रहवा बोल-२०७
प्रश्न किया गया है कि-भगवन । काल का प्रतिलेखन करने से जीव को क्या लाभ होता है ? शास्त्रकार कहते है
काले काल समायरे अर्थात-जिस काल में जो कार्य करना योग्य है, उस काल में वही कार्य करना चाहिए । स्वाध्याय करते समय सध्या आदि का ध्यान रखना चाहिए और देखना चाहिए कि यह काल स्वाध्याय करने का है या प्रतिक्रमण करने का? इस प्रकार विचार कर जो काल, जिस कार्य के लिए नियत हो, उस काल मे वही कार्य करना चाहिए । ऐसा न हो कि स्वाध्याय के समय प्रतिक्रमण किया जाये और प्रतिक्रमण के समय स्वाध्याय किया जाये । प्रत्येक कार्य नियत समय पर ही करना उचित है, अकाल मे नही । । अकाल मे कार्य करने का निषेध किया है ।
शास्त्र में इस बात पर विचार किया गया है कि किस दिन सवत्सरी और पक्खी वगैरह मानना चाहिए । इस पर कोई प्रश्न कर सकता है कि मवत्सरी या पक्खी किस प्रमाण के अनुसार मानना चाहिए ? इस प्रश्न का सामान्य समाधान यह है कि सवत्मरी आदि आगमानुसार माननी चाहिए। लेकिन मेरी मान्यता के अनुसार शास्त्र मे ज्योतिष सम्बन्धी जो बाते आई है, उनके आधार पर कोई ठीक पचांग निकल सकना सभव नही है। फिर यह प्रश्न किया जा सकता है कि अगर वर्तमान में विद्यमान अगोपांगों के आधार पर अगर कोई पचाग नहीं बन सकता तो ऐसी स्थिति मे क्या करना चाहिए । इस प्रश्न का उत्तर यही है कि वर्तमान मे जो अगोपाग मौजूद है उनके आधार से, मेरी मान्यता के अनुसार पचाग नहीं बन सकता । अत