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२१८-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
स्वामी नामक जैन-साधु के समक्ष मदिरा, मांस और परस्त्री का त्याग किया था । इस त्याग के प्रभाव से गाधीजी विलायत मे मदिरा आदि अपवित्र वस्तुओ के सेवन के पाप से बच सके थे। विलायत से भारत लौटने के पश्चात् वह फिर दक्षिण अफ्रिका गये थे । वहाँ का अनुभव लिखते हुए गाधीजी कहते हैं
कोट्स नामक ईसाई ने ईसाई धर्म के विषय में मुझ से बहुत तर्क-वितर्क किया और मैंने भी उसके सामने बहुतेरी दलीलें दी । मगर मेरी दलीलें उसकी समझ में नहीं आई, क्योकि उसे मेरे धर्म पर अश्रद्धा ही थी । वह तो उलटा मुझे ही अज्ञान-कूप से बाहर निकालना चाहता था! उसका कहना था कि दूसरे धर्मों में भले ही थोडा-बहुत सत्य हो मगर पूर्ण सत्य-स्वरूप ईसाई धर्म स्वीकार किये बिना तुम्हे मुक्ति नहीं मिल सकती। ईसु की कृपादृष्टि के यिना पाप धुल नहीं सकते और तमाम पुण्यकार्य निरर्थक हो जाते है ! जब मैं कोट्स की दलीलो से प्रभावित न हुआ तो मेरा परिचय ऐसे ईसाइयो के साथ कराया गया जिन्हे वह अधिक धर्मचुस्त समझता था। जिनके साथ उसने मेरा परिचय कराया, उनमें एक प्लीमथ ब्रदरन का कुटुम्ब था । प्लीमथ ब्रदरन नामक एक ईसाई सम्प्रदाय है । कोट्स ने कुछ ऐसे परिचय कराये जो मुझे बहुत अच्छे लगे । उनके परिचय से मुझे ऐसा लगा कि वे लोग ईश्वर से डरते थे; मगर इस परिवार ने मेरे सामने यह दलील रखी कि तुम हमारे धर्म की खूबी समझ नही सकते । तुम्हारे कहने से हम जान सकते हैं कि तुम्हे क्षण-क्षण अपनी भूल का विचार करना पड़ता है और सुधार करना पड़ता है । अगर भूल