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२०८-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
एव अगर सूत्र का नाम लेकर कोई यह कहता है कि हम पवखी- सवत्सरी की आराधना सूत्रोक्त तिथि आदि के आधार पर करते हैं तो उनका यह कथन मिथ्या है, क्योकि वर्तमान मे सूत्रो द्वारा यह निर्णय नही हो सकता कि किस प्रकार या किस रीति से ज्योतिप सम्वन्धी गणना करनी चाहिए या तिथि माननी चाहिए। आजकल लौकिक और जित व्यवहार के आधार पर पक्खी-सवत्सरी आदि की आराधना की जाती है, वह ठीक है और एक प्रकार से सत्रसम्मत है । पक्खी-सवत्सरी आदि का आराधन इसी प्रकार करना उचित है ।
शास्त्र मे पाच प्रकार के व्यवहार कहे गये है - (१) आगम-व्यवहार (२) सूत्र-व्यवहार (३) आणा-व्यवहार (४) धारणा-व्यवहार और जित-व्यवहार । जव आगमव्यवहार वगैरह कम होते जाते हैं या हो जाते हैं तव पाच आचार्य मिलकर जो नियम बनाते है, उसे जित-व्यवहार कहते है । पक्खी-सवत्सरी आदि जित-व्यवहार के अनुसार ही करनी चाहिए किन्तु आगम के नाम पर इस बात को घोटकर चिकना करना उचित नहीं है । पक्खी या संवत्सरी के दिन तो अपने पापो की ही आलोचना करनी होती है तो फिर इस बात को लेकर निकम्मे झगड़े खडे करना कैसे उचित कहा जा सकता है ?
टीकाकार का कथन है कि काल के अनुसार ही वस्त का ग्रहण हो सकता है और काल के अनुसार ही करना, चाहिए । उदाहरणार्थ साधु दिन रहते ही भोजन कर सकते है, रात्रि के समय नही; परन्तु दिन कितना बडा होता है और कब से कब तक दिन समझना चाहिए, इसका कोई